SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीया सर्गः अनुवाद-प्रथम महेश्वर, कामदेवसे स्पर्धा करनेसे उन्मत्त नामक फूल( धतूर ) को और दूसरा कामदेव भी विरहकी मनोव्यथासे सन्तप्त उन्मत्त ( उन्मादयुक्त, पागल ) को पाकर, इस तरह दोनों ही असीम हर्षको धारण करते हैं // 98 // टिप्पणी-हर:=ह + अच् / स्मरस्पधितयास्मरं स्पर्धते तच्छील: स्मरस्पर्धी, स्मर + स्पर्ध+णिनिः ( उपपद०)। स्मरस्पर्धिनो भावः स्मरस्पधिता, तया, स्मरस्पधि+तल + टाप्+टा। उन्मत्तम् उद् + मद्+क्त+ अम् / "उन्मत्त उन्मादवति धुस्तूरमुचुकुन्दयोः" इति विश्वः / द्वितीयः= द्वि+तीय + सु / विरहाऽऽधिदूनं विरहेण आधिः ( तृ० त० ), तेन दूनः, तम् (तृ० त०)। आसाद्य=आङ् + सद् + णिच्+क्त्वा ( ल्यप् ) / असीमाम् = अविद्यमाना सीमा यस्याः सा असीमा, ताम् ( नन्-बहु० ) / उद्वहेते=उद्+वह + लट्+आताम् / स्वरितकी इत्संज्ञा होनेसे वह धातु आत्मनेपदी भी है। इस पद्यमें शब्दश्लेष और अर्थश्लेष भी है और उनसे उपमा व्यङ्गय होती है // 98 // तयाऽभिधात्रीमय राजपुत्री निर्णीय तां नंषधबद्धरागाम् / अमोचि चञ्चूपुटमौनमुद्रा विहायसा तेन विहस्य भूयः // 66 // अन्वयः-अथ तथा अभिधात्रीं तां राजपुत्री नैषधबद्धरागां निर्णीय तेन विहायसा विहस्य भूयः चच्चूपुटमौनमुद्रा अमोचि / / 99 // / व्याख्या-अथ = अनन्तरं, तथा तेन प्रकारेण, अभिधात्रीं= भाषमाणां, "श्रुतः स दृष्टश्च 3-83" इत्यादिरूपेणेति भावः / तां = पूर्वोक्तां, राजपुत्रीं= नपकुमारी दमयन्तीम् / नैषधबद्धरागां=नले कृतप्रणयां, निर्णीय=निश्चित्य, नपूर्वोक्तेन, विहायसा=पक्षिणा, हंसेन / विहस्य = हास्यं विधाय, भूयःपुनरपि, चञ्चूपुटमौनमुद्रात्रोटिपुटतूष्णीकत्वचिह्न, वचनाऽभाव इति भावः / अमोचि=मुक्ता, पुनरपि हंसोऽवादीदिति भावः // 99 / / अनुवाद-- तब वैसा करनेवाली उन राजपुत्री-( दमयन्ती ) को नलमें प्रेम करनेवाली निश्चय करके उस पक्षी-( हंस ) ने हंसकर फिर मौनको भङ्ग किया ( बोलने लगा ) / / 99 // टिप्पणी-अभिधात्रीम् =अभिदधातीति अभिधात्री, ताम्, अभि +धा+ तृच् + ङीप् + अम् / राजपुत्री- राज्ञः पुत्री, ताम् (ष० त०), नैषधबद्धरागांबद्धो रागो यया सा बद्धरागा ( बहु० ) / नैषधे बद्धरागा, ताम् ( स० त०)।
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy