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________________ तृतीयः सर्गः यह कार्य (मेरे विषय में प्रार्थनारूप) तुम्हें नहीं कहना चाहिए। क्योंकि जलसे तृप्त पुरुषको मधुर, खुशबूदार तथा ठण्डी जलधारा भी पसन्द नहीं होती है। ____ टिप्पणी-शुद्धान्तसम्भोगनितान्ततृप्तेशुद्धान्तस्य सम्भोगः (10 त० ), यहाँ शुद्धान्तपदका शुद्धान्तकी स्त्रीमें लक्षणा करना चाहिए / नितान्तं यथा तथा तृप्ता ( सुप्सुपा० ), शुद्धान्तसम्भोगेन नितान्ततृप्तः, तस्मिन् (तृ० त०)। निगाद्यम् =निगदितुं योग्यम्, नि+गद+ण्यत् / अपां "पूरणगुणसुहिताऽर्थसदव्ययतव्यसमानाधिकरणे" इस सूत्रमें सुहितार्थक ( तृप्त्यर्थक ) शब्दसे षष्ठीसमासका निषेधरूप ज्ञापकसे षष्ठी हुई है। तृप्ताय='स्वद' धातु रुच्यर्थक होनेसे “रुच्यर्थानां प्रीयमाणः" इस सूत्रसे सम्प्रदान संज्ञा होनेसे चतुर्थी / सुगन्धिः=शोभनो गन्धो यस्यां सा ( बहु० ), यहाँपर एकान्त नियमका कविने निरादर कर "गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः" इस सूत्रसे समासान्त इ प्रत्यय किया है / स्वदते स्वद+लट् + त / इस पद्यमें दृष्टान्त अलङ्कार है // 93 // विज्ञापनीया न गिरो मदर्थाः ऋधा कदुष्णे हदि नषधस्य / पित्तेन दूने रसने सिताऽपि तिक्तायते हंसकुलावतंस ! // 14 // अन्वयः-हे हंसकुलाऽवतंस ! नैषधस्य हृदि धा कदुष्णे ( सति ) मदर्था गिरो न विज्ञापनीयाः / पित्तेन दूने रसने सिता अपि तिक्तायते / / 94 // ___ व्याख्या-हे हंसकुलाऽवतंस ! हे मरालवंशभूषण ! नैषधस्य = नलस्य, हृदि = हृदये, क्रुधा कोपेन, कदुष्णे = ईषत्तृप्ते सति, मदर्था:-मत्प्रयोजनाः, गिरः वाचः, न विज्ञापनीया:=नो वेदनीयाः। तथाहि पित्तेन = मायुना, पित्तदोषेणेत्यर्थः / रसने=रसनेन्द्रिये, दूने उपतप्ते, दूषिते सतीति भावः / सिता अपि-शर्करा अपि, तिक्तायते-तिक्ता भवति / / 94 / / ___अनुवाद-हे हंसवंशके भूषणस्वरूप ! नलका हृदय क्रोधसे कुछ तप्त होनेपर मेरे लिए प्रार्थना-वचनका निवेदन मत करो, क्योंकि पित्तके दोषसे रसना इन्द्रियके दूषित होनेपर चीनी भी कडुवी हो जाती है // 94 // ___ टिप्पणी-हंसकुलाऽवतंस - हंसानां कुलं ( ष० त०), तस्य अवतंसः, तत्सम्बुद्धी (10 त०)। कदुष्णे ईषत् उष्णं, तस्मिन्, ( गति०), "कवं चोष्णे" इस सूत्रमें चकारके पाठसे 'कु' के स्थानमें "कत्" आदेश हुआ है / मदर्थाः = मह्यम् इमाः ( च० त०)। विज्ञापनीयाः-वि+ज्ञा+णिच् + अनीयर् + टाप् + जस् / दूने=दु+क्त+ङि / तिक्तायते तिक्ता भवति, तिक्ता शब्दसे "लोहितादिडाभ्यः क्यष्" इससे क्यष् प्रत्यय और "वा
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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