SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीया सर्गः 21 अनुवाद-दरिद्रताको नष्ट करनेवाले धनसमूहकी वृष्टियोंसे याचकसमूहमें सफल मेघके समान व्रत करनेवाले सन्तुष्ट और यज्ञसे देवताबोंकी बाराधना करने बाले महाराज नलसे कौन जन अभीष्ट पदार्थोकी याचना नहीं करते हैं // 25 // टिप्पणी-दारिद्रयदारिद्रविणोघवर्षेः-दारिद्रघ दारयतीति दारिद्रयदारी दारिद्रय+द+णिच् + णिनिः / द्रविणानाम् ओघः (प०त०) / दारिद्रयदारी, चाऽसौ द्रविणोषः (क० धा०) / तस्य वर्षाणि, तैः (10 त०) / अर्थिसाथै = मर्थिनां सार्थः, तस्मिन् (प० त०)। अमोघोषव्रतम्न मोघम् अमोघम् ( न०)। मेघस्य व्रतम् (ष० त०)। अमोघं मेघव्रतं यस्य सः, तम् (बहु०)। इष्टदेवम् इष्टा देवा येन सः, तम् (बहु.)। लोकनायं लोकानां नाथः, तम् (ष० त० ) / नाथन्तिः नाथ ( नाधु ) याचओपतायश्वर्याशीःषु" इस धातुसे लट् + झि / याचनाऽर्थक नाथ् धातु दुहादिगणमें पड़े जानेसे द्विकर्मक है। इस पद्यमें उपमा अलङ्कार है // 25 // अस्मत्किल श्रोत्रसुधा विधाय रम्मा चिर भामतुला नलस्य। तत्राऽनुरक्ता तमनाप्य भेजे तमामगन्धानलकूबरं सा // 26 // अन्वयः-सा रम्भा नलस्य अतुलां भाम् अस्मत् चिरं श्रोत्रसुधां विधाय का बनुरक्ता ( सती ) तम् अनाप्य तन्नामगन्धाद नलकूबरं भेजे // 26 // - व्याल्या-सा=प्रसिद्धा, रम्भादेवाङ्गना, नलस्य नैषधस्य, अतुलाम् - अनुपमां, भां= सौन्दर्यम्, अस्मतमत्तः चिरंबहुकालपर्यन्तं, श्रोत्रसुधां-कर्णाऽमृतं, विधाय-कृत्वा, अनुरागात् त्वेति भावः / तत्र तस्मिन् नले, अनुरक्ता=अनुरागयुक्ता ( सती), तम्=नलम्, अनाप्य%= व्याप्य, तन्नामगन्धात्न लसज्ञाऽक्षरलेशाद, नलकूबरं-कुबेरपुत्रं, भेजे= हिवेधे // 26 // मनुवाद-रम्भा नामकी अप्सराने नसके अनुपम सौन्दर्यको मुझसे बहुत . समयतक कानोंके अमृत बनाकर ( रससे सुनकर ) उनमें अनुराग कर उन्हें न पानेसे नलके नामके लेश ( एक सड) से कुबेरके पुत्र नलकूबरका बाभव लिया // 26 // टिप्पणी-सा=यहाँ तद् सन्दके प्रसिद्धवर्ष में होने से यद् शब्द के बनेपर भी विधेयाऽविमर्श दोष नहीं हुमा। बतुलाम् अविचमाना तुला (उपमा ) यस्याः सा बतुला, ताम् (नब्बहु०) / अस्मत् अस्मद+भ्यत् / मोबसुधा बोत्रयोः सुधा, ताम् (100) / हपर माम्" इस पद का
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy