________________ प्रथमः सर्गः च प्रचारणं च अधीतिबोधाचरणप्रचारणानि, तैः ( द्वन्द्वः ) / यहाँपर "अधीति" पदसे शन्दतः अध्ययनका, "बोध' पदसे अर्थज्ञानका, "आचरण" पदसे शास्त्रोक्त कर्मके अनुष्ठानका और "प्रचारण" पदसे अध्यापन वा लोकमें प्रचार करनेका तात्पर्य समझना चाहिए / “उपाधिभिः-उपाधिधर्मचिन्तायां केतवे च विशेषणे।" इति विश्वः / चतस्रः यह “दशाः" इस पदका विशेषण है। "त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसचतसृ" इस सूत्रसे स्त्रीलिङ्गमें 'चतुर' शब्द के स्थानमें "चतसृ" आदेश हुआ है। प्रणयन् -प्रणयतीति, प्र-उपसर्गपूर्वक “णी प्रापणे" धातुसे लट्के स्थानमें "लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे" इस सूत्रसे शतृ आदेश, लट्की अनुवृत्ति होनेपर भी फिर लट्के ग्रहणसे कहीं-कहींपर प्रथमाके सामानाधिकरण्यमें भी शत-शानच् आदेश ज्ञापित हैं / चतुर्दशत्वं = चतुर्दशानां भाव: चतुर्दशत्वं, तत्। चतुर्दश शब्दसे "तस्य भावस्त्वतलो" इस सूत्रसे त्व प्रत्यय / “त्वाऽन्तं क्लीबम्" इस लिङ्गाऽनुशासन सूत्रसे त्व-प्रत्ययाऽन्त शब्द नपुंसकलिङ्गमें रहता है / यहाँपर चौदह विद्याओंको चार भेदोंसे गुणन करनेपर छप्पन होना चाहिए, फिर चतुदशत्व कैसे ? ऐसा विरोध होनेपर उसका परिहार- "चतुर्दशत्वम्" इसका चतस्रः दशा यासां ताश्चतुर्दशाः ( बहु० ), तासां भावः चतुर्दशत्वम् अर्थात् चार अवस्थावालियोंका भाव ऐसा अर्थ करनेसे उसका परिहार होता है, अतः विरोधाभास अलंकार होता है। उसका लक्षण है "आभासत्वं विरोधस्य विरोधाभास इष्यते।" "चतुर्दशत्वम्" यहाँपर "त्वतलोर्गुणवचनस्य" इससे पुंवद्भाव हुआ है। कुतः= कस्मात् इति "किम्" शब्दसे "पञ्चम्यास्तसिल्" इस सूत्रसे तसिल प्रत्यय और "कु ति होः" इससे "किम्" के स्थानमें "कु" आदेश हुआ है। कृतवान् = "कृ" धातुसे "निष्ठा" इस सूत्रसे कर्ताके अर्थमें क्तवतु प्रत्यय / वेधि-विद्+लट् + मिप् // 4 // अमष्य विद्या रसनाऽनर्तकी त्रयीव नीताङ्गगुणेन विस्तरम् / अगाहताऽष्टादशतां जिगोषया नवयटीपपृथग्जयधियाम् // 5 // अन्वयः-अमुष्य रसनाऽग्रनर्तकी विद्या, त्रयी इव अङ्गगुणेन विस्तरं नीता ( सती ) नवद्वयद्वीपपृथग्जयश्रियां जिगीषया अष्टादशताम् अगाहत / / 5 // व्याख्या-नलस्याऽष्टादशविद्याऽभिज्ञता प्रतिपादयति अमुष्येति / अमुष्य = नलस्य / रसनाऽग्रनर्तकी = जिह्वाग्रसञ्चारिणी, विद्यापूर्वोक्ता वेदादिविद्या सूद. विद्या च रसनाऽग्रनर्तनधर्मादिति भावः, त्रयी इव-त्रिवेदी इव, अङ्गगुणेन = शिक्षाघङ्गावृत्त्या, विस्तरं वृद्धि,नीता-प्रापिता सती, नवद्वयद्वीपपृथग्जयश्रियाम् =