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________________ द्वितीयः सर्गः त०), तेन भग्नः ( तृ० त०)। स्यदात् जातः स्यदजः, स्य+जन् +डः / स चाऽसौ मदः ( क० धा० ) / ब्रह्माऽण्डाघातभग्नः स्यदजमदो येषां ते (बहु० ), तेषां भावः तत्ता, तया / ब्रह्माऽण्डाघातभग्नस्यदज+मद + तल + टाप् +टा / ह्रीधृताऽवाङ्मुखत्वः=हिया धृतम् (तृ० त० ) / अवाक् मुखं येषां ते अवाङ्मुखाः (बहु०)। तेषां भावः अवाङ्मुखत्वम्, अवाङ्मुख+ त्व। ह्रीधृतम् अवाङ्मुखत्वं यस्ते, तैः ( बहु० ) / उत्तानगायाः= उत्तानं गच्छतीति उत्तानगाः, तस्याः, उत्तान + गम् +ड+टाप् + ङस् / “उत्ताना वै देवगवा बहन्ति" वेदके इस वचनके अनुसार यह उक्ति है / सुरसुरभे:-सुरस्य सुरभिः. तस्या (ष० त०)। आस्यदेशम् =आस्यस्य देशः, तम् (प. त०) / गताऽप्रैः= गता अग्रा येषां ते, तैः (बहु०) / अंशुदर्भः=अंशव एव दर्भाः, तैः (रूपक०) / यद्गोग्रासप्रदानव्रतसुकृतं-गोः ग्रासः (ष० त० ), तस्य प्रदानं (ष० त०). तदेव व्रतम् (रूपक०), तस्य सुकृतं ( 10 त०), "स्याद्धर्ममस्त्रियां पुण्यश्रेयसो सुकृतं वृषः" इत्यमरः / यस्या गोग्रासप्रदानव्रतसुकृतम् ( ष० त० ) / अदि. श्रान्तं न विश्रान्तम् ( नत्र 0 ) / अविश्रान्तं यथा तथा, यह क्रियाविशेषण है / उज्जम्भते स्म =उद्-उपसर्गपूर्वक "जभि" धातुसे "स्म" के योगमें भूतकालमें लट् + त / बहुतसे मरकत ( पन्ना ) रत्नोंसे बना हुआ दमयन्तीका क्रीडापर्वत है, उससे उत्पन्न किरणें ब्रह्माण्डतक पहंची, उपर न जानेसे मानों लज्जासे लौट रही थी, उसी समय ऊपर मुख करनेवाली देवताओंकी गायोंक मुख में पड़ीं, वे कुशोंके समान हरे वर्णवाली थी, इसीको लेकर वैदर्भीके क्रीडा. पर्वतमें गोग्रास देनेके पुण्यका वर्णन किया गया है। इस पद्यमें "अंशुदर्भ:" यहाँपर रूपक है / अंशुदर्भोका ब्रह्माण्डसे आघात आदिका सम्बन्ध न होनेपर भी सम्बन्धका वर्णन करनेसे अतिशयोक्ति, "लज्जासे अधोमुख" इस अर्थमें काचक शब्दके न होनेसे प्रतीयमानोत्प्रेक्षा और लोकाऽतिशयसम्पत्तिका वर्णन होनेसे उदात्त अलङ्कार, इस प्रकार इन अलङ्कारोंकी संसृष्टि है / स्रग्धरा छन्द है, उसका लक्षण हैम्रनर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् / " // 105 // विधुकरपरिरम्मादात्तनिष्यन्दपूर्णः शशिषदुपक्ल-तेरालवालस्तरूणाम् / विफलितजलसेकप्रक्रियागौरवेण व्यरचित हतचित्तस्तत्र भैमीवनेन // 106 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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