________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् सखिता, ताम्, सखि+तल्+ टाप् + अम् / आदित=आङ्-उपसर्गपूर्वक "डुदान दाने" धातुसे काम लुङ+त / इस पद्यमें चन्द्रमाका शेषनागके साथ, उनके कलङ्कका विष्णुके साथ और पीली पताकाका पीतवस्त्रके साथ सादृश्य है। इस पद्यमें वलभीपताकाके चन्द्रकलङ्कके साथ मिलनका सम्बन्ध न होनेपर भी सम्बन्धका प्रतिपादन करनेसे अतिशयोक्ति और उपमा अलङ्कार है। इन दोनोंका अङ्गाङ्गिभाव होनेसे सङ्कर है // 101 // अश्रान्तश्रुतिपाठपूतरसनाऽऽविर्भूतभूरिस्तवा जिह्मब्रह्ममुखौघविनितनवस्वर्गक्रियाकेलिना। यत्प्रासाददुकूलवल्लिरनिलाऽऽन्दोलेरखेलदिवि // 102 // वाजिह्मब्रह्ममुखौघविनितनवस्वर्गक्रियाकेलिना, गाधिसुतेन पूर्व सामिघटिता मुक्तो मन्दाकिनी नु अनिलान्दोलः दिवि अखेलत् // 102 // व्याख्या-यत्प्रासाददुकूलवल्लि: कुण्डिननगरीराजभवनपताकालता, अश्रान्तश्रुतिपाठपूतरसनाऽऽविर्भूतभूरिस्तवाऽजिह्मब्रह्ममुखीधविनितनवस्वर्गक्रियाकेलिना =निरन्तरवेदपाठपवित्रजिह्वाप्रादुर्भूतप्रचुरस्तोत्राऽकुण्ठपितामहाऽऽननप्रत्यूहितनूतनसुरलोकरचनाविलासेन, गाधिसुतेन-विश्वामित्रेण, पूर्वप्रथम, ब्रह्मप्रार्थना. दिति शेषः सामिघटिता- अर्धसृष्टा, प्रागिति शेषः, मुक्ता-त्यक्ता, पश्चादिति शेषः / मन्दाकिनी नु= आकाशगङ्गा किम्, अनिलान्दोल: वायुचलनः, दिवि आकाशे, अखेलत् =अक्रीडत् / / 102 // अनुवाद-कुण्डिनपुरीके राजभवनकी पताका, लगातार वेदपाठ करनेसे पवित्र जीभसे प्रादुर्भूत प्रचुरस्तोत्रमें कुण्ठित न होनेवाले ब्रह्माजीके मुखोंसे नये स्वर्गलोककी रचनामें विघ्नवाले विश्वामित्रसे ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे पहले आधी बनायी गयी और पीछेसे छोड़ी गयी आकाशगङ्गा, वायुके आन्दोलनोंसे आकाशमें मानों खेल रही थी // 102 // ___टिप्पणी-यत्प्रासाददुकूलवल्लि:-यस्याः प्रासादः (10 त०), दुकूलं वल्लिरिव दुकूलवल्लि: ( उपमितकर्म० ), यत्प्रासादे दुकूलवल्लिः (स० त०), अश्रान्तश्रुतिपाठन श्रान्तः अश्रान्तः (न), श्रुतेः पाठः (10 त०), अश्रान्तश्चाऽसौ श्रुतिपाठः (क० धा० ), तेन पूताः ( तृ० त०), अश्रान्त. श्रुतिपाठपूताश्च ता रसनाः (क० धा० ), ताभ्य आविर्भूताः (प० त० ) /