________________ 88 . षषीयचरितं महाकाव्यम् इस सूत्रसे इनि; "कुण्डली गूढपाच्चक्षुःश्रवा काकोदरः फणी" इत्यमरः / फणा होनेसे सर्पको "फणी" कहते हैं। यहाँपर "फणी" कहनेसे पाणिनिकी अष्टाध्यायीके महाभाष्यकार शेषनागके अवतार पतञ्जलि मुनि विवक्षित हैं। फणिना भाषितम् ( तृ० त० ), फणिभाषितं च तत् भाष्यम् ( क० धा० ), सूत्रकी व्याख्याको "भाष्य" कहते हैं। उसका लक्षण है___"सूत्राऽर्थो वर्ण्यते यत्र पदैः सूत्राऽनुसारिभिः / स्वपदानि च वय॑न्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः // " . अर्थात् जहाँ पर सूत्र के अनुसरण करनेवाले पदोंसे सूत्रार्थका और उसी . प्रसङ्गमें प्रतिपादित स्वप्नोंका भी वर्णन होता है, उसे "भाष्य" कहते हैं / काव्यमीसांसामें राजशेखरने "आक्षिप्य भाषणाद्भाष्यम्" ऐसा लक्षण किया है / जहाँपर आक्षेपपूर्वक सूत्रार्थका वर्णन किया जाता है, उसे भाष्य कहते हैं / फणिभाषितभाष्यस्य फक्किका (ष० त०)। कहा जाता है कि अष्टाध्यायीके सूत्रोंका महाभाष्य पेड़के पत्तोंपर लिखकर कोई विद्वान् ले आ रहे थे, वे मध्याह्नमें पेड़के नीचे सो रहे थे, इतने में कुछ सूत्रों के व्याख्या-भाग भाष्यके पन्नोंको बकरीने खा लिया, अतः उतने भागमें कुण्डलाकार चिह्न अङ्कित है। जैसे वे सूत्रांऽश भाष्यकी अनुपलब्धिसे दुर्जेय हैं, उसी तरह खाईसे कुण्डलाकार घिरी हुई कुण्डिननगरी शत्रुओंसे आक्रमणकी विषयभूत नहीं है, यह तात्पर्य है / इस पद्यमें कैतवाऽपह्नति और नगरीका कुण्डलिग्रन्थत्वसे उत्प्रेक्षा, वह व्यञ्जक शब्दोंके अभावसे प्रतीयमानोत्प्रेक्षा, इस प्रकार दो अलङ्कारोंका अङ्गाङ्गिभावसे सङ्कर हैं // 95 // मुखपाणिपदाऽक्षिण पङ्कज रचिताऽगेष्वपरेषु चम्पकः। स्वयमादित यत्र भीमजा स्मरपूजाकुसुमलम: भियम् // 66 // अन्वयः-यत्र मुखपाणिपदाऽक्षिण पङ्कजः, अपरेषु अङ्गेषु चम्पकः रचिता भीमजा स्मरपूजाकुसुमस्रजः श्रियं स्वयम् आदित // 96 // ___ व्याल्या-यत्र=कुण्डिननगयाँ, मुखपाणिपदाक्षिण = वदनकरचरणनेत्रे, पङ्कजः कमलैः, रचिता, अपरेषु अन्येषु, मुखपाणिपदाक्षिव्यतिरिक्तेष्विति भावः / अगेषु=अवयवेषु, चम्पक:-चम्पकपूष्पः, रचिता=निर्मिता, सर्वत्र सादृश्याद् व्यपदेशः, तादृशी, भीमजाः= दमयन्ती, स्मरपूजाकुसुमस्रजः-कामाऽर्चनपुष्पमालायाः, श्रियंशोभा, स्वयम् = आत्मनैव, आदित=आत्तवती, गृहीतवती // 96 //