________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् बलिसदिवं स तथ्यवागुपरि स्माऽऽह दिवोऽपि नारदः / अधराऽथ कृता यथेव सा विपरीताऽजनि भूविभूषया // 84 // अन्वयः-स तथ्यवाक् नारदः बलिसद्मदिवं दिवः अपि उपरि आह स्म / अथ भूविभूषया यया अधरा कृता इव सा विपरीता अजनि // 84 // व्याल्या-स:=प्रसिद्धः, तथ्यवाक्=सत्यवचनः, नारदः=ब्रह्मपुत्रः, देवर्षिविशेषः / बलिसद्मदिवं=पातालस्वर्ग, दिवः अपि-स्वर्गात् अपि, उपरि ऊध्वंस्थिताम्, उत्कृष्टां च, आह स्म= उक्तवान् / अथ = इदानीं, भूविभूषया= भूम्यलङ्कारभूतया, यया-कुण्डिननगर्या, अधरा=न्यूना, अधस्ताच्च, कृता इव विहिता इव, सा=बलिसमद्यौः, विपरीता=अन्यादृशी, नारदोक्तेरिति शेषः / हीना इति भावः / अजनि=जाता, सर्वोपरिस्थितायाः पुनरधःस्थितिपरीत्यमिति भावः // 84 // अनुवाद-प्रसिद्ध सत्यभाषी नारद ऋषिने पातालरूप स्वर्गको स्वर्गसे भी ऊपर ( उत्कृष्ट ) कहा था। इस समय पृथिवीकी अलङ्कारभूत जिस कुण्डिननगरीने अपने सौन्दर्यसे पातालको अधर (नीचा )-सा कर दिया, इस कारण से वह ( पातालरूप स्वर्ग ) विपरीत ( नीचा ) हो गया // 84 // . टिप्पणी-तथ्यवाक् =तथ्या वाक् यस्य सः ( बहु० ) / बलिसदिवं= बलेः सम (10 त०), "अधोभवनपातालं बलिसा रसातलम्" इत्यमरः। बलिसम एव द्यौः, ताम् ( रूपक० ) / आह स्म= ब्रू धातुके स्थानमें "बुवः पञ्चानामादित आहो ब्रुवः" इस सूत्रसे "आह" आदेश, "स्म" के योगमें भूतकालमें लट् / नारदने विष्णुपुराणमें "स्वर्गादप्यतिरमणीयानि पातालानि" अर्थात् "पाताल स्वर्गसे भी अत्यन्त रमणीय है" ऐसा कहा है / भूविभूषयाभूवो विभूषा, तया (प० त०)। अजनि-जन+ला ( कर्तामें )+त / स्वर्ग और पातालसे भी कुण्डिनपुरी रमणीय है, यह तात्पर्य है / इस पद्यमें "बलिसद्मदिवम्" यहाँपर रूपक और "कृता इव" यहाँपर उत्प्रेक्षा है, इस प्रकार दो अलङ्कारोंका अङ्गाङ्गिभाव होनेसे सङकर अलङ्कार है / / 84 // प्रतिहट्टपये घरट्टजात् पथिकाह्वानदसक्तुसौरभे। कलहान घनान् यत्यितानघुनाऽप्युज्मति घर्घरस्वरः // 85 // अन्वयः-पथिकाह्वानदसक्तुसौरभे प्रतिहट्टपथे घरट्टजात् यदुत्थितात् कलहात् घर्घरस्वरः अधुना अपि धनान् न उज्झति / / 85 //