________________ 68 नैषधीयचरित महाकाव्यम् आदि ही किया, यह भाव है / इस पद्यमें द्वितीय और चतुर्थ पादोंमें अन्त्ययमक अलङ्कार है / / 72 // . अथ भीमभुजेन पालिता नगरी मञ्जुरसौ धराजिता। पतगस्य जगाम दृक्पथं हिमशेलोपमसौधराजिता // 73 // अन्वयः-अथ धराजिता भीमभुजेन पालिता हिमशलोपमसौधराजिता मञ्जुः असो नगरी पतगस्य दक्पथं जगाम / / 73 // ___ व्याख्या-अथ प्रस्थानाऽनन्तरं, धराजिता=भूमिजयिना, भीमभुजेन = भीमभूपबाहुना, पालिता-रक्षिता, हिमशैलोपमसौधराजिता=हिमालयसदृश. राजभवनशोभिता, मजुः=मनोहरा, असौ=इयं, नगरी-पुरी, कुण्डिनपुरीति भावः / पतगस्य-पक्षिणः, हंसस्य / दृक्पथं - नेत्रमार्ग, जगाम=ययो, हंसः= कुण्डिनपुरी ददर्शेति भावः // 73 // अनुवाद-तब पृथ्वीको जीतनेवाले महाराज भीमके बाइसे रक्षित हिमालय पर्वतके समान ( सफेद ) राजभवनोंसे शोभित, मनोहर वह कुण्डिनपुरी पक्षी ( हंस ) के दृष्टिमार्ग में प्राप्त हुई // 73 // __ टिप्पणी-धराजिता-धरां जयतीति धराजित्, तेन, धरा+जि+क्विप् ( उपपद० )+-टा। भीमभुजेन=बिभेति अस्मात् इति भीमः, "भीमादयो. ऽपादाने" इस सूत्रसे निपातन / भीमस्य भुजः, तेन (ष० त०)। हिमशैलोपमसोधराजिता=हिमानां शैल: ( 10 त० ), तस्य इव उपमा ( सादृश्यम् ), येषां तानि ( व्यधिक बहु० ) / तानि च तानि सौधानि (क० धा० ), "सोधोऽस्त्री राजसदनम्" इत्यमरः / तैः राजिता ( तृ० त० ) / दृक्पथं देशोः . पन्थाः दृक्पथः, तम् (ष० त०), समासाऽन्त अप्रत्यय / जगाम = गम् + लिट्+तिप् / इस पद्यमें "मञ्जुरसो धराजिता" इस द्वितीय चरणमें 'असो. धराजिता' और चतुर्थचरणमें 'सौधराजिता' होनेसे विरोधाभास अलङ्कार है। 'हिमशलोपमसौधराजिता' यहाँपर उपमा है, पूर्वार्द्ध में अन्त्याऽनुप्रास और द्वितीय और चतुर्थ चरणमें यमक है, इस प्रकार संसृष्टि है // 73 // दयितं प्रति यत्र सन्ततं रतिहासा इव रेजिरे भुवः। स्फटिकोपलविग्रहा गृहा: शशभृत्तिनिरङ्कभित्तयः // 74 // अन्वयः-यत्र स्फटिकोपलविग्रहाः शशभृद्भित्तनिरङ्कभित्तयः गृहा दयितं प्रति सन्ततं भुवः रतिहासा इव रेजिरे // 74 / /