________________ द्वितीयः सर्गः अधरं खलु बिम्बनामकं फलमस्मादिति भव्यमव्ययम् / लभतेऽधरबिम्बमित्यवः पदमस्या रदनच्छदं वदत् // 24 // अन्वयः-अधरबिम्बम् इति अदः पदम् अस्या रदनच्छदं वदत् बिम्बनामकं फलम् अस्मात् अधरं खलु इति भव्यम् अन्वयं लभते // 24 // व्याख्या-अधरबिम्बम् =अधरबिम्बम् इत्यानुपूर्वीकम्, इति =एवम्, अतः एतत्, पदंशब्दः, अस्याः=दमयन्त्याः, रदनच्छदम् - ओष्ठं, वदत् = अभिदधत् प्रतिपादयदिति भावः / बिम्बनामकं-बिम्बाऽभिधेयं, फलंसस्यम्, अस्मात् =दमयन्तीरदनच्छदात् अधरम् =अपकृष्टं, खलु - निश्चयेन, इति - अस्मात्कारणात, भव्यम् =अबाधितम्, अन्वयं-पदार्थसंसर्ग, लभतेप्राप्नोति // 24 // . अनुवाद-"अधरबिम्ब" यह पद दमयन्तीके ओष्ठका प्रतिपादन करता हुआ बिम्ब नामक फल दमयन्तीके ओष्ठसे अधर ( निकृष्ट ) है इस प्रकार अबाधित अन्वय ( पदार्थसंसर्ग ) को प्राप्त करता है // 24 // टिप्पणी-रदनच्छदं रदनानां छदः, तम् ( 10 त०), "रदना दशना दन्ता रदाः" इति "ओष्ठाऽधरी तु रदनच्छदौ दशनवाससी" इति चाऽमरः / वदत् =वदतीति, वद+लट् ( शतृ )+सु / बिम्बनामक बिम्बं नाम यस्य तत् ( बहु०) / लभतेलभ+लट् +त / 'अधरबिम्ब" यह पद दमयन्तीके ओष्ठका प्रतिपादन करनेके लिए अधरं बिम्ब (बिम्बफलम् ) यस्मात्तत् इस प्रकार बहुब्रीहि समाससे अबाधित अन्वर्थ हो जाता है। अन्य स्त्रीके ओष्ठको कहने के लिए 'अधरो बिम्बम् इब' इस प्रकार उपमितकर्मधारय समास करना चाहिए / आकारसे, रक्त वर्णसे और आस्वादसे उत्कृष्ट होनेसे दमयन्तीका ओष्ठ बिम्ब फलसे उत्कृष्ट है-यहं तात्पर्य है / इस पद्यमें उपमानभूत बिम्ब फलसे उपमेयभूत दमयन्तीके ओष्ठके आधिक्यका वर्णन होनेसे व्यतिरेक अलङ्कार है // 24 // हतसारमिवेन्दुमण्डलं. दमयन्तीवदनाय वेधसा / कृतमध्यबिलं विलोक्यते धृतगम्भीरखनीखनीलिम // 25 // अन्वयः-इन्दुमण्डलं दमयन्तीवदनाय वेधसा हृतसारम् इव कृतमध्यबिलं धृतगम्भीरखनीखनीलिम विलोक्यते // 25 // व्याल्या-इन्दुमण्डलं =चन्द्रबिम्ब, दमयन्तीवदनाय = दमयन्तीवदनं निर्मातुं, वेधसा=ब्रह्मणा, हृतसारम् इव - गृहीतश्रेष्ठभागम् इव, कृतमध्य