________________ द्वितीयः सर्गः अनुवाद-हे राजन् ! दमयन्ती के मातृकुल और पितृकुल दोनों ही लोकका श्रवण विषय होकर परस्परके उत्कर्षसे शोभित होते हैं, इसी तरह उनकी दोनों आँखें कान तक फैलनेसे परस्परके उत्कर्षसे शोभित होती हैं तथा सुने गये और देखे गये दमयन्तीके सौन्दर्य-औदार्य आदि स्त्रीगुण भी लोकसे श्रवणके विषय होनेसे परस्परमें अत्यन्त शोभित होते हैं // 22 // टिप्पणी-धरापते धरायाः पतिः, तत्सम्बुद्धी (10 त० ) दमस्वसुः= दमस्य स्वसा दमस्वसा, तस्याः (10 त०)। दमन ऋषिके वरसे महाराज भीमके दम नामका पुत्र और दमयन्ती नामकी पुत्री उत्पन्न हुई थी, महाकविने वर्णनीय होनेसे दमयन्तीकी उत्पत्तिका वर्णन लिखा, दमका नहीं। "न षट्स्वस्रादिभ्यः' इससे "ऋन्नेभ्यो डीप्" इससे प्राप्त डीप्का निषेध हुआ है / लोकयुग-लोकयोयुगम् (प० त०), 'लोक' शब्द यहाँपर लक्षणासे कुलवाचक हुआ है। श्रुतिगामितया श्रुत्योर्गच्छतीति श्रुतिगामि, श्रुति + गम् +णिनिः / श्रुतिगामिनो भावः, तया, श्रुतिगामि+तल +टाप् +टा / सुतरांतरपप्रत्यान्त 'सु' उपसर्गसे "किमेत्तिङव्ययधादाम्बद्रव्यप्रकर्षे" इससे आमु प्रत्यय / व्यतिभाते-वि+अति-उपसर्गपूर्वक मदादिस्थ "भा दीप्तो" इस धातुसे "कर्तरि कर्मव्यतिहारे" इससे आत्मनेपद हुआ है। कर्मव्यतिहारका अर्थ है कर्मका विनिमय और कैयटके मतमें परस्पर करणको भी कर्मव्यतिहार माना गया है। व्यतिभाते=वि+अति+मा+लट्+त। यहाँपर यह एकवचन है / दृशी"दृग्दष्टी" इत्यमरः। श्रुतिगामितया=श्रुत्योर्गच्छतस्तच्छीले इति श्रुतिगामिन्यो, श्रुति+ गम् +णिनि+डीप् ( उपपद०)। श्रुतिगामिन्योर्भावः श्रुतिगामिता, तया, श्रुति+गामिनी+तल +टाप् +टा। यहाँपर "त्वतलोर्गुणवचनस्य" इस सूत्रसे पुंवद्भाव हुआ / व्यतिभाते पहलेके सूत्रसे आत्मनेपद, वि+अति+मा+आताम्, यण और सवर्णदीर्घ करके 'व्यतिभाताम्' ऐसा रूप होनेपर "टित आत्मनेपदानां टेरे" इससे 'टि'का एत्व होकर ऐसा रूप बनता . है / श्रुतदृष्टाः प्राक् श्रुताः पश्चाद् दृष्टाः, "पूर्वकालकसर्वजरत्पुराणनवकेवलाः समानाऽधिकरणेन" इससे पूर्वकालसमास रमणीगुणाः- रमण्या गुणाः (प० त०)। श्रृंतिगामितयाः=श्रुत्योर्गच्छन्तीति श्रुतिगामिनः, श्रुति+ गम् +णिनिः ( उप० ) / "श्रुतिः श्रोत्रे, तथाऽऽम्नाये, वर्तायां, श्रोत्रकर्मणी"ति विश्वः / श्रुतिगामिनां भावः तया, श्रुतिगामिन्तल+टाप् +टा / पतिभाते / वि+अति+मा+। पहलेके सूत्रसे आत्मनेपद और "मात्मने.