________________ द्वितीयः सर्गः . कन्यारूप वर पाया यह तात्पर्य है / इस पद्यमें "दमनादमनाक्" यहाँपर यमक अलङ्कार है // 17 // भुवनत्रयसुभ्र वामसौ दमयन्ती कमनीयतामदम् / * उदियाय यतस्तनुश्रिया दमयन्तीति ततोमियां वधौ // 18 // अन्वयः-असौ यतः तनुश्रिया भुवनत्रयसुध्रुवां कमनीयतामदं दमयन्ती उदियाय, ततः दमयन्तीति अभिधां दधौ // 18 // व्याख्या-अथाऽस्या नामधेयं तद्व्युत्पत्ति च प्रदर्शयति-भुवनेति / असौ= तनया, यतः=यस्मात्कारणात, तनुश्रिया=निजशरीरसौन्दर्येण, भुवनत्रयसुध्रुवां=लोकत्रितयसुन्दरीणां, कमनीयतामदं - सौन्दर्यगर्व, दमयन्ती-बस्वं गमयन्ती सती, उदियाय उदिता, उत्पन्नेति भावः / ततः तस्मात्कारपात, दमयन्ती इति=दमयन्तीत्यानुपूर्विकाम्, अभिधां=नाम, दधौ=बभार // 18 // अनुवाद-वह ( भीमकी पुत्री ) जिस कारणसे अपने शरीरके सौन्दर्यसे तीन लोकोंकी सुन्दरियोंके सौन्दर्यगर्वका दमन करती हुई उत्पन्न हुई उस कारण से उन्होंने 'दमयन्ती' ऐसे नामको धारण किया / / 18 // टिप्पणी-यतः यद्+तसिल / तनुश्रिया=तनोः श्रीः, तया (प. त०) / भुवनत्रयसुध्रुवां-त्रयः अवयवाः यस्य तत् त्रयम्, त्रि शब्दसें “सङ्ख्याया अवयवे तयप्" इस सूत्रसे तयप् प्रत्यय और "द्वित्रिभ्यां तयस्याऽयज्वा" इस सूत्रसे उसके स्थानमें विकल्पसे अयच् आदेश / शोभने भ्रवी यासां ताः सुभ्रवः ( बहु० ) / भुवनानां त्रयम् ( 10 त० ), तस्मिन् सुभ्रवः ( स० त०) तासाम् / कमनीयतामदं = कमनीयस्य भावः ( कमनीय+तल् + टाप् ), कमनीयताया मदः, तम् (ष. त०)। दमयन्ती=दमयन्तीति, णिजन्त दम धातुसे लट् ( शतृ )+ङीप्, यहाँपर "न पादम्याङ्ग." इत्यादि सूत्र से परस्मैपदका निषेध होनेपर भी "क्रियाफल कर्तृगामि न होनेसे "शेषात्परस्मैपदम्" इससे परस्मैपद हुआ है। उदियाय-उद् + इण+लिट् + तिप् ( णल)। दधौ धा+लिट् + तिप् / इस पद्यमें भुवनत्रयकी सुन्दरियोंकी अपेक्षा दमयन्तीके सौन्दर्यकी अधिकताका वर्णन होनेसे व्यतिरेक अलङ्कार है // 18 // श्रियमेव परं घराऽधिपाद् गुणसिन्धोरवितामवेहि ताम् / व्यवधावपि वा विधोः कलां मृण्चूगनिकयां न वेरकः // 16 // 20 वि०