________________ हितीयः सर्गः अनुवाद-शत्रुसमूहसे अन्वर्थ नामवाले राजा भीम उत्कर्षपूर्वक बढ़ रहे हैं जिनको पतिके रूपमें पाकर विदर्भ देशकी भूमि इन्द्ररूप स्वामीवाली स्वर्गभूमिका भी उपहास कर रही है / / 16 // ___ टिप्पणी-अरिसार्थसार्थकीकृतनामा अर्थेन सहितं साऽर्थकम्, "तेन सहेति तुल्ययोगे" इस सूत्रसे तुल्ययोग बहु० / “वोपसर्जनस्य" इससे विकल्पसे "सह" के स्थानमें "स" आदेश / "शेषाद्विभाषा" इससे समासान्त का प्रत्यय / असार्थकं साऽर्थकं यथा सम्पद्यते तथा कृतम्, सार्थक+च्चि++ क्तः / सार्थकीकृतं नाम यस्य सः ( बहु० ) / अरीणां सार्थः (10 त०), तस्मिन् सार्थकीकृतनामा ( स० त० ) / “सङ्घसाथी तु जन्तुभिः" इत्यमरः / भीमभूपतिः = भुवः पतिः (10 त०)। भीमश्चाऽसौ भूपतिः ( क. धा०)। बिभेति अस्मात् इति भीमः, "निभी भये" धातुसे "भीमादयोऽपादाने" इस सूत्रसे मक् प्रत्यय / जिससे शत्रु डरता है वह 'भीम' ऐसी व्युत्पत्तिसे सार्थक (अन्वर्थ) नामवाले राजा भीम हैं-यह तात्पर्य है / जयति=जि+ लट् + तिप् / यहाँपर "जि" धातु अकर्मक है। प्रभुं = "प्रभुः परिवृढोऽधिपः" इत्यमरः / अवाप्य अव+आप+ क्त्वा (ल्यप्) / विदर्भभूः-विदर्भाणां भूः (प०त०)। चक्रभर्तृकांशक्रः भर्ता यस्याः सा शकभर्नुका, ताम् (बहु० ) / "नवृतन" इस सूत्रसे कप् और टाप् / चाम्='यो' शब्बसे द्वितीयाका एकवचनं, "मोतोऽम्शसोः" इस सूत्रसे ओकारके स्थानमें आकार आदेश / "सुरलोको बोदिवी द्वे" इत्यमरः / हसति="हसे हसने" धातुसे लट् + तिप् / यह बकर्मक है / अतः "द्यामपि" यहाँपर "लक्ष्यीकृत्य" इस पदका अध्याहार करना पाहिए / “भीमभूपतिः" इस अंशमें "निरुक्त" नामका लक्षण है / जैसा कि नालोकमें है - ___ "निरुक्तं स्याग्निर्वचनं नाम्नः सत्यं तथाऽनृतम् / ईदृशश्चरितः राजन्सत्यं दोषाकरो भवान् // " इस पद्यमें विदर्भभूमिका स्वर्गभूमिके हाससे सम्बन्ध न रहनेपर भी सम्बन्धकी उक्तिसे अतिशयोक्ति और "धाम् अपि" यहाँपर स्वर्ग को भी हँसती है, और को क्या कहना इस प्रकार अर्थापत्ति है, इस प्रकार दो अलहारोंकी संसृष्टि है / / 16 // बमनावमनाकासेदुषस्तनयां तथ्यगिरस्तपोधनात् / वरमाप स विष्टविष्टपत्रितयाऽनन्यसहग्गुणोक्याम् // 17 //