________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् भाव: नलीभवद्भिः कृतदीर्घयत्नः तद्वैतसिद्धिविहिता कथञ्चित् / दृष्टा च पृष्टा च परस्परेण नैवानुमेने कृतकमृतं कथम् // . अनुवादः-नल होने का प्रयास करते हुये उन देवों के द्वारा नलरूपान्तर किसी प्रकार किया गया। वह भी दर्पण आदि में देखने एवं पूछने से नल के रूप की सही रूप से सिद्धि का उन लोगों ने अनुमान नहीं किया, क्योंकि स्वाभाविक से बनावटी कुछ और ही तरह का होता है // 19 // पूर्णेन्दुमास्यं विदधुः पुनस्ते पुनर्मुखोचक्रुरनिद्रमब्जम् / स्ववक्त्रमादर्शतलेऽथ दर्श दर्श बभर्न तथातिमञ्जु // 20 // अन्वयः-ते पुनः पूर्णेन्दुम् आस्यं विदधुः पुनः अनिद्रम् अब्जम् मुखीचक्रुः अथ आदर्शतले स्ववक्त्रं दर्श दर्श तथा अतिमञ्जु न बभजु / - व्याख्या-ते = देवाः, पुनः पूर्णेन्दुम् = पूर्णचन्द्रम्, आस्यम् = मुखम्, चक्रुः = विदधुः, पुनः अनिद्रम् % विकसितम्, अब्जम् = कमलम्, मुखीचक्रुः = मुखाकारतां निन्युः, अथ आदर्शतले - मुकुरोदरे, स्ववक्रम् = आत्ममुखम्, दशं दर्श = दृष्ट्वा दृष्ट्वा , तथा- नलमुखसदृशम्, अतिमञ्जु = परमसुन्दरम्, न= नहि, इति बभञ्जु = भजन्तिस्म, एवमर्नेकवारं मुखपरिवर्तनं चक्रः। . टिप्पणी-पूर्णेन्दुम् = पूर्णश्चासाविन्दुः तम् पूर्णेन्दुम्, ( कर्मधारयः ) दर्श दर्श = आभीक्ष्ण्ये णमुल द्वित्वञ्च / भाव:पूर्णेन्दु विहितमपास्य तन्मुखं स्वं प्रोनिद्रं कमलमिमे प्रचारात्मवक्त्रम् / आदर्शेऽसदृशमवेक्ष्यतन्मुखस्य तद्भिन्नं विदधुरमी समे दिगीशाः / / अनुवाद:--वे सभी इन्द्रादि देवों ने फिर अपने मुख को पूर्ण चन्द्रमा बनाया फिर विकसित कमल बनाया इस प्रकार बनाकर दर्पण में देख देख कर नल के मुख के समान सुन्दर न होने के कारण बार बार बिगाड़ दिया। ( पूर्ण चन्द्रमा बनाकर दर्पण में देखकर बिगाड़ दिया, विकसित कमल बनाकर दर्पण में देखा वह भी वैसा नहीं हुआ तो उसको भी रद्द कर दिया। ) किसी प्रकार भी नल के मुख के समान सुन्दर नहीं हुआ // 20 // तेषां तथा लब्धुमनीश्वराणां श्रियं निजास्येन नलाननस्य / नालं तरीतुं पुनरुक्तिदोषं बहिर्मुखानामनलाननत्वम् // 21 //