________________ પ૦ જ્ઞાનસાર सावधैः कर्मयज्ञैः किं भूतिकामनयाऽऽविलैः // 2 // वेदोक्तत्वान्मनःशुख्या कर्मयज्ञोऽपि योगिनः / ब्रह्मयज्ञ इतीच्छन्तः श्येनयागं त्यजन्ति किम् ? // 3 // ब्रह्मयज्ञः परं कर्म गृहस्थस्याधिकारिणः। पूजादि वीतरागस ज्ञानमेव तु योगिनः // 4 // भिमोद्देशेन विहितं कर्म कर्मक्षयाक्षमम् / क्लृप्तभिन्नाधिकारं च पुत्रष्ट्यादिवदिष्यताम् // 5 // ब्रह्मार्पणमपि ब्रह्मयज्ञान्तर्भावसाधनम् / ब्रह्मानौ कर्मणो युक्तं स्वकृतत्वस्मये हुते // 6 // ब्रह्मण्यर्पितसर्वखो ब्रह्मदृग् ब्रह्मसाधनः / ब्रह्मणा जुह्वदब्रह्म ब्रह्मणि ब्रह्मगुप्तिमान् // 7 // ब्रह्माध्ययननिष्ठावान् परब्रह्मसमाहितः / ब्राह्मणो लिप्यते नाधैर्नियागप्रतिपत्तिमान् // 8 // ___ 29 पूजाष्टक दयाम्भसा कृतस्त्रानः संतोषशुभवस्त्रभृत् / विवेकतिलकभ्राजी भावनापावनाशयः // 1 // भक्तिश्रद्धानघुसृणोन्मिश्रपाटीरजद्रवैः / / नवब्रह्माङ्गतो देवं शुद्धमात्मानमर्चय // 2 // क्षमापुष्पस्रजं धर्मयुग्मक्षौमद्वयं तथा / ध्यानाभरणसारं च तदङ्गे विनिवेशय // 3 // मदस्थानभिदात्यागैलिखाग्रे चाष्टमंगलम् / ज्ञानामौ शुभसंकल्पकाकतुण्डं च धूपय // 4 //