________________ 5 જ્ઞાનસાર गुणवबहुमानादेनित्यस्मृत्या च सत्किया। जातं न पातयेद् भावमजातं जनयेदपि // 5 // ... क्षायोपशमिके भावे या क्रिया क्रियते तया। / पतितस्यापि तद्भावप्रवृद्धिर्जायते पुनः // 6 // गुणवृद्ध्यै ततः कुर्यात् क्रियामस्खलनाय वा। एकं तु संयमस्थानं जिनानामवतिष्ठते // 7 // वचोऽनुष्ठानतोऽसङ्गक्रियासंगतिमङ्गति / सेयं ज्ञानक्रियाऽभेदभूमिरानन्दपिच्छला // 8 // - 10 तृप्त्यष्टक पीखा ज्ञानामृतं भुक्त्वा क्रियासुरलताफलम् / साम्यताम्बूलमाखाद्य तृप्निं याति परां मुनिः // 1 // खगुणैरेव तृप्तिश्चेदाकालमविनश्वरी। . ज्ञानिनो विषयैः किं तैयैर्भवेत्तृप्तिरित्वरी // 2 // या शान्तैकरसास्वादाद् भवेत् तृप्तिरतीन्द्रिया। सा न जिह्वेन्द्रियद्वारा षड्रसास्वादनादपि // 3 // संसारे स्वमवन्मिथ्या तृप्तिः स्यादाभिमानिकी / तथ्या तु भ्रान्तिशून्यस्य साऽऽत्मवीर्यविपाककृत् // 4 // पुद्गलैः पुद्गलास्तृप्तिं यान्त्यात्मा पुनरात्मना / परतृप्तिसमारोपो ज्ञानिनस्तन्न युज्यते // 5 // मधुराज्यमहाशाकाग्राह्ये बाह्ये च गोरसात् / परब्रह्मणि तृप्तिर्या जनास्तां जानतेऽपि न // 6 //