________________ सानसा२ . . ध्रुवैकरूपान् शीलादिबन्धूनित्यधुना श्रये // 2 // कान्ता मे समतेवैका ज्ञातयो मे समक्रियाः / बाह्यवर्गमिति त्यक्त्वा धर्मसंन्यासवान् भवेत् // 3 // धर्मास्त्याज्याः सुसंगोत्थाः क्षायोपशमिका अपि / प्राप्य चन्दनगन्धामं धर्मसंन्यासमुत्तमम् // 4 // गुरुत्वं स्वस्य नोदेति शिक्षासात्म्येन यावता। आत्मतत्त्वप्रकाशेन तावत् सेव्यो गुरुत्तमः // 5 // ज्ञानाचारादयोऽपीष्टाः शुद्धस्खवपदावधि / निर्विकल्पे पुनस्त्यागे न विकल्पो न च क्रिया // 6 // योगसंन्यासतस्त्यागी योगानप्यखिलांस्त्यजेत् / इत्येवं निर्गुणं ब्रह्म परोक्तमुपपद्यते // 7 // वस्तुतस्तु गुणैः पूर्णमनन्तैर्भासते स्वतः। रूपं त्यक्तात्मनः साधोनिरभ्रस्य विधोरिव // 8 // 9 क्रियाष्टक ज्ञानी क्रियापरः शान्तो भावितात्मा जितेन्द्रियः / खयं तीर्णो भवाम्भोधेः परांस्तारयितुं क्षमः // 1 // क्रियाविरहितं हन्त ज्ञानमात्रमनर्थकम् / / गति विना पथज्ञोऽपि नामोति पुरमीप्सितम् // 2 // खानुकूलां क्रियां काले ज्ञानपूर्णोऽप्यपेक्षते / प्रदीपः स्वप्रकाशोऽपि तैलपूर्त्यादिकं यथा // 3 // बाह्यभावं पुरस्कृत्य ये क्रियां व्यवहारतः / वदने कवलक्षेपं विना ते तृप्तिकांक्षिणः // 4 //