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________________ भावी जीवन. इस लोक में सबको अपने कम्मों का फल नहीं मिलने से परलोक में वैसा फल मिले ऐसी प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है परन्तु उसमें अपने को नहीं पर दूसरे सबों को उनके दुष्कर्मों का बदला मिलना चाहिए ऐसी विशेष इच्छा होती है। अपने विषय में तो मनुष्य अपने अपराध क्षमा करे ऐसी प्रार्थना करते हैं। यह प्रार्थना भी न्याय की प्रार्थना जितनी स्वाभाविक और आंतरिक होती है / बैबिलोनिया के पश्चात्ताप के स्तोत्र में बताया है कि मेरे प्रभु मेरे पाप अनगिनत हैं, उन्हें एक वस्त्र की तरह फाड़ दो मेरे अपराध क्षमा करो' ___ परन्तु ईसाई धर्म में तो जबतक मनुष्य अपने अपराधियों के अपराधों को क्षमा नहीं करता तबतक उस से इस प्रकार प्रार्थना की नहीं जा सकती / खुद जैसी क्षमा मांगता है वैसी क्षमा उसे प्रथम दूसरों पर क्षमा करना चाहिए / यदि अपने लिए न्याय नहीं पर क्षमा मिले ऐसा वह इच्छा करता हो तो उसी के अनुसार उसे दूसरों पर भी न्याय से बढकर प्रबल और उत्तम ऐसे स्नेहका वर्ताव करना चाहिए। ईसाई धर्मानुसार यही प्रेम की भावना है इन भावनाओं के अनुसार ईसाई धर्म में दो मुख्य आज्ञाएं की गई हैं कि मनुष्य को सर्व भाव से ईश्वर पर प्रेम करना चाहिए और अपने ऊपर जैसा प्रेम रखता है वैसा ही प्रेम उसे अपने पड़ोसी पर करना चाहिए / भावी जीवन मानने का कारण पूर्व बताई हुई मनुष्य के न्याय प्राप्त करने की इच्छा ही है तो ही परलोक को इस
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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