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________________ 2.2 तुलनात्मक धम्मैविचार. मनुष्य लौकिक सुख भोगते हैं और पापी मनुष्य सज़ा पाते हैं। परलोक में अपने इस जन्म के कर्मानुसार अच्छा बुरा फल मिलता है ऐसा अब भी बहुत से मनुष्य मानते हैं / अपने को इस दुनिया में न्याय न मिला हो तो वह मिलना ही चाहिए ऐसी प्रबल इच्छा सब को होने से बहुत से मनुष्य और मुख्य तया उपयोगिता के नियम मानने वाले तत्वज्ञ इसी को ही भावी जीवन मानने का ठीक कारण बताते हैं / इस मतानुसार जो बंधु विश्व न्याय के सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाए वह अन्त में सबको न्याय मिलना ही चाहिए ऐसा हमारा निर्णय ही भावी अच्छे और बुरे फलों में श्रद्धा उत्पन्न करने में समर्थ है। हमारी न्याय वृत्ति को लक्ष्य में रख कर प्रतिपादन किए हुए इस सिद्धांत में इतना तो प्रथम ही मान लिया है कि यदि न्याय मिलना हो तो जो दुष्ट मनुष्य अपने दुष्कर्मों से इस दुनिया में निभ जाता है उसे न्याय का बराबर हक रखने के लिए परलोक में उसके दुष्कर्मों का बदला मिलने की आवश्यकता है / ईसाई धर्म इसी विश्वास पर आक्षेप करता है। यदि एक तरफ से सारी दुनियाका लाभ होता हो और दूसरी ओर अपना नाश हो तो उसमें दुष्कर्म करने वाले को क्या लाभ मिलेगा ? इस दृष्टि से विशेष सज़ा को व्यर्थ और / असंभव माना है और पाप ही पाप का दंड रूप होगा ऐसा बताया है।
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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