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________________ तुलनात्मक धर्मविचार, लोक में किए हुए कामों का हिसाब चुकाने का स्थान के रूप में माना जाए, पर ईसाई धम्में में ऐसा नहीं माना जाता / ईसाइयों का ऐसा विश्वास है कि प्रत्येक मनुष्य के संबंध में ईश्वर की इच्छा सिद्ध करनी और प्रेम का समग्र कार्य परिपूर्ण होना चाहिए / यह विश्वास ईसाई धर्म के भावी जीवन के विश्वास का स्वरूप है। ___अनिष्ट भोगने से किसी का अनिष्ट करना यह अधिक खराब है यह बात ग्रीक लोगों की और उनमें अरिस्टोटल की दृष्टि से बाहर न थी / यदि केवल अनिष्ट करने से ही बचना हो तो वह इस दुनिया तथा जीवन में से निवृत्त होने से ही हो सकता है / बौद्ध धर्म ने यह निषेधात्मक निर्णय बताया है / सब अनिष्ट का मूल यह जीवन में से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त करने के लिये अपनी सब इच्छाओं को त्याग कर के दुनिया के दूसरे मनुष्यों के साथ अपना संबंध मनुष्य को छोड़ देना पड़ता है / इस प्रकार बुद्धधर्म और ईसाई धर्म की इस लोक तथा परलोक की भावनाएं भिन्न हैं / बुद्ध लोग इस जीवन को बल्कि जीवन मात्र को ही नरक रूप मानते हैं और उससे छूटने का मार्ग ढूंडते हैं। ईसाई लोग मानते हैं की इस लोकिक जीवन में ही प्रभु का साम्राज्य प्रत्यक्ष होने तथा उसकी इच्छा परिपूर्ण होनी संभव है / यह जीवन तथा भावी जीवन संबंधी ईसाई धर्म का उपदेश प्रवृत्यात्मक है / मनुष्य को दुनिया से निवृत्त होना पाप से मुक्त होना तथा जीवन में
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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