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________________ भावी जीवन. से छूटने का मार्ग ढूंडना चाहिए एसा केवल उसमें बताया नहीं परन्तु उसे अपने पड़ोसी तथा प्रभु पर प्रेम रखना तथा अनंत जीवन के मार्ग को ढूंड निकालना ऐसा फर्माया है। दुनियां के भिन्न भिन्न धर्मों में भावी जीवन की जो भिन्न भिन्न कल्पनाएं देखी जाती हैं उनका स्वाभाविक रीति से व्यक्ति के स्वभाव तथा गौरव की भिन्न भिन्न कल्पनाओं के साथ संबंध होता है। जब समाज को अपने जीवन युद्ध में अतिशय बल लगाने की आवश्यकता पड़ती है और उस के लिये जब मनुष्यों का भोग देकर अपना अस्तित्व कायम रख सकती है तब उस समाज के मनुष्यों के जीवन की थोड़ी ही कदर की जाती है। जल्दी या देर से सब को मरना ही है। समाज का देव भी समाज के अभिप्राय से मिलता ही होता है / वह देव के सामने समाज के अंग के रूप में ही मनुष्य प्रतिष्ठा पाते हैं। एक मनुष्य की तरह उसका उस देव पर हक़ नहीं रहता और जब इस लोक में नहीं रहते तो परलोकमें तो कहां से रहें ? असीरिया तथा बैबिलोनिया के धर्मों में यहूदी धर्म में और प्राचीन ग्रीस तथा रोम के लोगों के धर्म में ऐसा ही माना गया है। मृत्यु के बाद सब नरक में जाते हैं ऐसा वह मानते हैं। प्राचीन ईरान में धर्म की तरह जहां परलोक के स्वर्ग और नरक ऐसे दो विभाग डाले हुए हैं वहां भी उनकी समाज में दाखल होने वाले को ही स्वर्ग मिलता है ऐसी कल्पना
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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