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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. की गई है / मनुष्य को एक मनुष्य के रूप में नहीं पान्तु समाज के अंग के रूप में ही स्वर्ग में प्रवेश मिलता है। देवता समाज का ही होता है और उस देवता पर मनुष्य का मनुष्य के रूप में कोई भी किसी प्रकार का हक्क हो नहीं सकता ऐसी कल्पना एकेश्वरवाद के स्वीकार करने वाले याहूदी धर्म में तथा द्वंद्ववाद का स्वीकार करने वाले पारसी धर्म में बहुत काल तक कायम रही देखने में आता है / जेरेमिया और एजेकियल के समय तक बाहूदी धर्म में " धर्म समाज का है ऐसी भावना प्रचलित थी। यहोवाह और उसकी प्रजा अर्थत् याहूदी समाज इन दो का संबंध वह धर्म भी यहोवाह का समाज की व्यक्तियों के साथ संबंध न था इस विश्वासने धार्मिक व्यवहार पर बहुत ही असर किया है। व्यक्ति के धार्मिक व्यवहार और उसकी पवित्रता को उसने ही विकास होने से रोके होंगे" प्राचीन मिसर तथा जिस समय डीमीटर की मौनपूर्वक कराने वाली उपासनाओं का प्रचार बढ़ गया श उस समय के ग्रीस जैसे ही देशों में भावी सुख का आधार मनुष्य के अपने ही कर्मों पर रहता है ऐसा माना जाता / वहां व्यक्ति के धार्मिक स्वतंत्रता की भावना का समावेश देखने में आता है / यह विश्वास समाज के उसके देवों के साथ के संबंध में किसी अंश में परिवर्तन करने में समर्थ हुआ है / धर्म में मनुष्य के देव के साथ के स्वतंत्र संबंध का भी समावेश होता
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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