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________________ चतुर्थ प्रकरण पितृ पूजा mama श रीर के नाश हुए बाद भी जीवात्मा रहता है ऐसी * कल्पना दुनिया के सब ऐतिहासिक धर्मों में की गई है / तर्क शास्त्रानुसार अनुमान करने से अथवा जीवात्मा की अखंड दशा को साक्षात्कार करके ऐसी कल्पना की गई होगी। ___ जो जीवात्मा व्यवहार में प्रवृत्त होता है और कार्य करता है उसे जीवित मनुष्य का सूक्ष्म शरीर अथवा लिंग देह के रूप में तथा मृत मनुष्य को भूत के रूप में माना जाता है और वह स्वप्न में दीखता है / इस प्रकार मृत्यु के पश्चात् मनुष्य का जीवन स्थित रहता है इस के मानने से पूर्व, परलोक को माना गया है। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को प्रथम अपना ज्ञान नहीं होने से, अपने ज्ञान के विषय का ही ज्ञान होता है और इस प्रकार प्रत्येक बालक के इतिहास में देखा जाता है / बालक प्रथम मनुष्यों का विचार अथवा बुद्धि के विषय रूप समझता है / ठीक रीति से अपने संबंध में भी बालक को अहंवृत्ति पूर्वक अपने स्वतः का ज्ञान नहीं होता और वह अपने आप को अपने से भिन्न विषय के रूप में समझता है / ' मैं ऐसा करता हूं वह वैसा करता है ' ऐसे
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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