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________________ पितृपूजा. शब्दों के व्यवहार से बालक को कितना समय चाहिए और अपने बाह्य स्वरूप देह इंद्रिय इत्यादि के उपरान्त -- मैं ' शब्द से जो ज्ञान होता है वह वस्तु भी है ऐसा समझने के लिए भी कितना समय लगता है। ऊपर बताया है वैसे मृत्यु के पीछे परलोक की गति होती है ऐसा सब से पहले माना जाता है। अर्थात् व्यक्ति के ज्ञान के विषय रूप जीवित मनुष्य के सूक्ष्म स्वरूप का और मृत मनुष्य के भूत का जीवन कायम रहता है ऐसा पहले मान लिया जाता है / और इस पर वादविवाद किया जाता है / दूसरे मनुष्यों के बाह्य स्वरूप में शरीर का ग्रहण शीघ्र होने से वह अधिक महत्व रखता है और वह इतना अधिक कि प्राचीन मिसर में मृत्यु के बाद के आत्मा को जीवन का अधिकार मनुष्य के मृत शरीर के संरक्षण पर रहता है ऐसी कल्पना की जाती थी / इसाई धर्म में देह का पुनर्जीवन भी मृत्यु पश्चात् जीवन की एक प्रकार की अवस्था है। इस दृष्टि से देखने से जिस प्रकार रेखा को रेखा समझने के लिए दो प्रकार के सिरे होने आवश्यक हैं और इन दो सिरों के मिलाप से जैसे रेखा बनती है इसी प्रकार व्यक्ति का आन्तरिक स्वरूप और बाह्य स्वरूप यह दोनों केवळ अखंड जुड़े हुए माने गए हैं / इतना ही नहीं परंच दूसरे मनुष्य का जो बाह्य स्वरूप हम को शीघ्र ही प्रत्यक्ष होता है उसके भी शरीर के साथ ऐक्य गिना जाता है। दूसरे मनुष्यों के शरीर को ही
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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