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________________ जादु. प्राचीन कल्पना में उसका समावेश होता है। समाज के मनुष्य की ओरसे किए गए समाज के देवता के अपराध के परिणाम में समाज पर आफत आ पड़ती है। ऐसा विवेचन हम कर ही चुके हैं / असीरिया के प्रायश्चित्त के स्तोत्र में मनुष्य का तथा देवता के इस प्रकार के संबंध का पुनः प्रतिपादन किया गया है। इन स्तोत्रों में ऐसा माना गया है कि अपराधी मनुष्य के रक्षक देवता की प्रार्थना करनी चाहिए और उस के सामने पश्चात्ताप करना चाहिए / प्रतिकार जादु के प्रयोगों से जादुगर अथवा राक्षस को निष्फल करने की प्रवृत्ति करनी यह बताया नहीं / परन्तु यहां मनुष्यों के उनके देवताओं के साथ के संबंध की प्राचीन भावना में महत्व पूर्ण परिवर्तन हुए अथवा तो उनमें भारी विकास देखने में आता है / प्राचीन भावना के अनुसार समाज के देवता का अपराध होना चाहिए ऐसा समाज पर पड़ी हुई आफत से मालूम पड़ जाता परन्तु असीरिया के प्रायश्चित्त के स्तोत्रों में पश्चात्ताप करने वाले की ऐसी भावना बताई है कि उसके अपने अपराध से वह आफत में आ फंसा है और समाज के देवता जो समाज के सिवाय अन्य किसी की परवाह नहीं करते, समाज का ही हित संरक्षण करते हैं उनकी शरण में न जाते वह अपने रक्षक अमुक देवता की शरण में जाते हैं /
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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