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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. व्यवस्था करने में ही अंतिम उद्देश्य समाया है। इस उद्देश्य से देवता गौण हो जाते हैं। मुख्य करके आफतों से बचाने अथवा आफतों को रोकने में मनुष्य को सहायता करना उनके धर्मों में माना गया है और गौण रूप से मनुष्य को माने हुए कार्य में सहायता देने के लिए भी उसका उपयोग है। ईसा के उपदेश में दुनिया का यह क्रम बिलकुल उलटा हो जाता है, और इस प्रकार की दुनिया का मध्यबिंदु मनुष्य मिट कर ईश्वर होता है। मनुष्य की इच्छाओं को लेकर आरंभ नहीं होता उसी तरह से उन इच्छाओं की तृप्ति यह अंतिम उद्देश्य रहता नहीं। मनुष्य की नहीं परन्तु ईश्वर की ही इच्छा परिपूर्ण करने का अन्तिम उद्देश्य रहता है / इस में प्रवृत्ति कराने वाला प्रेम है इस के लिए 'तुम मत करो' ऐसे निषेधात्मक उपदेश के बदले 'तुम अपने पड़ोसी पर तथा ईश्वर पर प्रेम करो' ऐसा विध्यात्मक उपदेश करने में आया है। बौद्धधर्मानुसार ईसा ने इस जीवन को नरक रूप माना नहीं परन्तु इस दुनियां में ईश्वर का साम्राज्य फिर लाने के लिए तथा उसकी इच्छानुसार सब कुछ होना संभव है ऐसा माना है। प्रत्येक मनुष्य के संबंध में ईश्वर की इच्छा परिपूर्ण होती है और प्रेम से सारा कार्य सिद्ध होगा ऐसी श्रद्धा ईसाइयों के भावी जीवन से निश्चित रूप में मिलती है। जो न्याय के लिये शोर मचा रहे हैं और जिन को नियमों के भंग होने से होते हुए अपराध
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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