________________ प्रस्तावना. ऐसा निश्चय रखता है और अपने मतानुसार जो नास्तिक हैं उन के भोगने की पीड़ाओं से संतोष मानता है अथवा शान्त रहता है / बौद्ध मत में तो निराशावाद ही विशेष रूप से देखने में आता है। पीड़ा भोगने का स्थान भावी जीवन है ऐसा दूसरे धर्मों में मानने में आया है। परन्तु बौद्ध मतानुसार यह जीवन दुःखमय है और यही नरक है और इस में से पार होना ही निर्वाण है। इच्छाओं को सर्वांश में छोड़ने से ही निर्वाण मिल सकता है ऐसा माना गया है / ' तुम मत करो, ऐसे धर्म और नीति के निषेधात्मक स्वरूप की यह परमावधि है और व्यवहारिक रीति पर तो नहीं परन्तु काल्पनिक रीति पर होने वाले निर्दयता पूर्वक यह सिद्धान्त सर्व साधारण के लिए किया गया है। इच्छाओं के रोकने और निर्मूल करने पर ही बौद्ध धर्म का लक्ष्य है। वर्तमान समय में इस्लाम धर्म में तथा प्राचीन मिसर और ईरान में तो सदा तृष्णाओं की शान्ति करने का स्थान ही दूसरी दुनिया समझ रखा है। परन्तु जीवन का अन्तिम उद्देश्य इस लोक में अथवा परलोक में इच्छाओं को बिलकुल निर्मूल करने से या परितृप्त करने से सिद्ध होता है ऐसा जो मानते हैं वह इतना तो स्वयमेव ही स्वीकार करेंगे कि मनुष्य की 'इच्छाओं को' लेकर ही धार्मिक विचारों का आरंभ होता है और इन इच्छाओं की योग्य