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________________ प्रस्तावना. क्षमा करने वाले दयालु प्रभु की ज़रूरत नहीं उनके लिए भावी 'जीवन यही भावी दंड और पुण्य फल प्राप्त करने का स्थान है ऐसा निरूपण अब भी मालूम होता है। ऐसा होने पर भी मनुष्य और देवताओं के साथ कैसा संबंध है इस प्रश्न का ईसाई धर्म में ऐसा निर्णय किया गया है कि उनके बीच प्रेम का ही संबंध है। एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से कैसा संबंध है इस प्रश्न का भी ईसाई धर्म में यही निर्णय किया है। जब से मनुष्यों ने जंगली दशा में से उन्नति करके समुदाय रूप में एकत्र हो कर रहना आरंभ किया तब से सामाजिक संगठन चलता रहे इस लिए प्रत्येक समाज में मनुष्यों ने एक दूसरे पर विश्वास रखा होगा इसी प्रकार पुरुषों तथा स्त्रियों के प्रति, तथा माता पिता और संतति के प्रति प्रेम बंधन भी होना चाहिए। " विचारों के आरंभ होने पर इस से पूर्व उनके उपदेश आरंभ हों बहुत समय से तत्वों के आचरण में लाए हुए देखने में आते हैं / " इस सिद्धान्तानुसार प्रत्येक समाज के व्यवहार में प्रेम को स्थान मिलता है और मिला हुआ है कारण कि यदि ऐसा न हो तो समाज, ऐसा नाम ही न दिया जा सकता। परन्तु सिर्फ * इतना देखने में आता है कि थोड़ी उन्नति प्राप्त की हुई समाजों में प्रेम भी थोड़े अंश में होता है।
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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