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________________ तुलनात्मक धर्म विचार. 21 होता है तथापि लौकिक सुख प्राप्त करने के साधनरूप में भी उसका उपयोग देखने में आता है।। हम सामान्य रीति से कह सकते हैं कि समाज पर पड़ने वाली आफतों को, समाजकी प्रचलित नीति वा रीतिके किसी मनुष्य द्वारा भंग होने से, अमानुष व्यक्ति तथा शक्ति के संचार रूप में माना जाता है, और जिस शक्ति वा देवता का अपराध हुवा हो उसके कोप को शान्त करने, अनुग्रह प्राप्त करने और अपना प्रायश्चित्त दूर करने के लिए उसको बलिदान दिया जाता है। सिलोम के मिनार के गिरने का कारण, किसी के किये आराध पर से किसी अमानुष व्यक्ति अथवा शक्ति का हुआ कोप है ऐसा हेतु दिया जाता है / प्राचीन रीतिरिवाज के अतिक्रमण और समाज की प्रचलित नीति विरुद्ध आचरण करने से मनुष्य अपने ऊपर लौकिक आफतें लाता है इस दृष्टि से जहां तक हमने आगे उन्नति नहीं की तब तक ऊपर के हेतु अपने को यद्यपि स्वाभाविक मालूम होते हैं तथापि बहुत कुछ भारी लिखित इतिहास वाले धर्मों में अपराध का प्रायश्चित्त करके बलिदान और यज्ञ से देवताओं को शान्त करने के निमित्त अधिक ध्यान दिया गया है यह बात लक्ष्य रखने योग्य है। बुद्धने जो उपदेश दिया है उसमें अपराध को ही निर्मूल करने से मनुष्य पीड़ा से दूर रहता है ऐसा बताया गया है यथा प्रचलित नीति का अति
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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