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________________ प्रस्तावना. जाने के लिए नहीं पर कभी भी नजर नहीं आवे इसी लिए. दूर रहने की प्रार्थना की जाती है। स्वप्न में अथवा पिशाच रूप में उसका पुनरागमन होता है तो वह बहुत बुरा समझा जाता है और यथाविधि प्रेत संबंधी कार्य न होने से उनकी अवनति हुई है ऐसा माना जाता है / इस प्रकार मरे हुए को लक्ष्य बना कर की जाने वाली प्रेत क्रियाओं को भूत प्रेत आदि के पीड़ा से मनुष्यों को बचा रखने के साधन रूप माने गए हैं। मनुष्यों को भूत प्रेत आदि से कुछ भय होनेकी संभावना है. पर उनसे कुछ भी लाभ प्राप्त होने की आशा नहीं होती। समाज अपनी आवश्यकता के पूरा करने के लिए तथा अपनी इच्छाओं की पूर्ति निमित्त जिन व्यक्तिओं की वह भक्ति करता है उन की ही सहायता मांगता है। पितृ भाक्ति को अलग करने वाली धार्मिक उन्नति की इस दिशा में प्राचीन मिसर बैबिलोनिया असीरिया की प्रजा तथा यहूदी प्राचीन ईरानी और बौद्धों (जो इस कारण से नहीं परन्तु दूसरे कारण से ) ने आगे उन्नति की है / पर धार्मिकोन्नति की. प्रवृत्ति एक ही तरफ न होने से तथा प्रत्येक धर्म स्वतंत्र प्रकार से उन्नति प्राप्त करने से अधिकांश चीनी लोगों में और थोड़े अंश में बहुत कुछ आर्य प्रजा में प्राचीन काल से पितृ और देवताओं की भक्ति करने का रिवाज प्रचलित रहा मालूम पड़ता है / यद्यपि पितृ पूजा का मुख्य उद्देश्य आपत्ति रोकने का
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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