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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. समाज पर आता है वह किसी जाति के धार्मिक नियम को भंग करने से आता है। मनुष्य अपने पर दुःख किसी वर्जित काम को करने से लाता है या किसी रीति रिवाज को तोड़ने से। क्रोधित व्यक्ति अथवा शक्ति के केवल चले जाने के निमित्त प्रार्थना की जाती है और ऐसा करने से वह लालच में आए इस लिए उसको बलिदान दिया जाता है। परन्तु वह सदैव दूर रहने के लालच में पड़े इस लिए पुनः पुनः ऐसे बलिदान दिए जाते हैं। वास्तविक रीति से यदि देखा जाय तो प्रत्येक स्थान में देवताओं के यज्ञ और मृतक श्राद्धादि क्रियाएं नियत ऋतुओं में पुनः पुनः की जाती हैं या बहुत करके इसका प्रारंभ होता है उसी समय से समाज तथा शक्तियों के संबंध का धीमे धीमे परिवर्तन परंच विकास होता दिखाई देता है। जब बलिदान करने की क्रिया समाज की रीति बन जाती है तो जिस व्यक्ति के लिए बलिदान किया जाता है वह व्यक्ति भी समाज के मन में दृढ़ होती देखी जाती है। उन व्यक्तियों को अब पराई नहीं समझा जाता तो विरोधी किस प्रकार गिनी जांए ? ऊपर निर्दिष्टानुसार बलिदान देने पर भी यदि समाज पर आफतें आती रहें तो प्रार्थना के रूप में परिवर्तन करने में आता है और उत्पादक शक्ति के चले जाने के बदले में क्रोध शान्त करके भगतों पर कृपा करने की प्रार्थना की जाती है। संसार के बहुत कुछ इतिहास रखने वाले धर्मों में इस प्रसङ्गपर भूत प्रेत आदि को केवल चले
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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