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________________ 228 एकेश्वर वाद. धर्मरूपी मंदिर की अलौकिक व्यक्तिओं की पूजारूपी प्रथम मंज़िल बांधी गई थी और पीछे कई लोगोंने अनेक देववादरूपी दूसरी मंज़िल बांधी और फिर कईयोंने एकेश्वरवाद रूपी तीसरी मंज़िल बांध कर मकान को पूरा किया। ऐसे दृष्टांत से हम उलटे मार्ग पर चले जाएं यह संभव है इस लिये हम मनुष्यों के उनके देवताओं के संबंध के विषय में अर्थात् धर्म विषय ऐसी कल्पना करेंगे कि आरंभ में समाज के तथा एक अलौकिक व्यक्ति के संबंध को धर्म ऐसा नाम दिया गया था। यह अस्पष्ट रीति से कल्पना की गई कि अलौकिक व्यक्तियों को आरंभ में प्रत्येक समाज मानता था ऐसा हमें जिस पर से मानना पड़े ऐसी बात भी धामिक इतिहास में नहीं मिलती। अतिशय धाम्मिक याहूदी प्रजा के दृष्टान्त पर से हम देख सकते हैं कि धार्मिक विकास क्रम में एक ही नाम रहित अलौकिक व्यक्ति को मानना यह पहली सीढ़ी है। दूसरी तरफ एक ही देव को उसके भिन्न भिन्न विशेषणों के कारण भिन्न भिन्न देवों के रूप में मानने की कल्पना एकदम नहीं परन्तु क्रमशः प्रवेश होती गई है / जैसे भी हो तो भी धार्मिक विकास क्रम की ऐसी अवनत अवस्था को अनेक देववाद अथवा एकेश्वरवाद कहने से उलटे रस्ते चले जाने की संभावना है। हम इतना ही कह सकते हैं कि जिसमें से अनेक देववाद या एकेश्वरवाद उत्पन्न हो सके वैसी यह अवस्था थी। हम इतना भी कह सकते हैं और ऐसा बनना संभव है ऐसा
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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