________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 139 मान भी सकते हैं, कि आरंभ से ही अनेक देववाद तथा एकेश्वरवाद के उद्भव होने का क्रम भिन्न भिन्न हो गया था। देव शब्द के अर्थ में उसके पूजकों का भी समावेश हो जाता है कारण कि जिसकी पूजा करने वाले होते हैं उसी को देव कहते हैं सारी दुनियां का एक ही ईश्वर है ऐसा मानने वाला एकेश्वरवादी ईसाई की दृष्टि में ऐसा आता है कि (1) सत्य और अलौकिक व्यक्ति की पूजा करने वाले सब मनुष्यों ने ज्ञानपूर्वक अथवा अज्ञान से एकही ईश्वर की पूजा की हुई है और ( 2 ) जिस ईश्वर की उन्हों ने अज्ञान से खोज की है उस ईश्वर को उन्होंने अभी तक पहचाना ही नहीं या तो उसकी उन्होंने असत्य कल्पना ही की है। इस दृष्टिबिंदु से सब मनुष्य यद्यपि वास्तविक रीतिपर नहीं तथापि संभवित रीति से एक ही ईश्वर की पूजा करने वाले सिद्ध होते हैं। एकेश्वरवादी अपने ईश्वर को मनुष्य मात्र के ईश्वर के रूप में मानते हैं और मनुष्य जाति में कितने उसकी पूजा करने वाले होते हैं और बाकी के उसकी पूजा करने वाले हों ऐसी संभावना होती है ऐसा वह मानते हैं, और ऐसे संभवित पूजा करने वालों को वास्तविक पूजा करने वाले बनाने का काम एक संचारक धर्म के रूप में ईसाई धर्माने ले लिया है। ज्यूं ज्यूं एकेश्वरवादी धर्म का विकास होता जाता है यूं त्यूं प्रथम संकुचित पूजा करने वालों की समाज की.