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________________ गणपाठः] हमपश्चपाठी. 1860 प्रतिजनादेरीनञ् // 71 // 20 // प्रतिजन / अनुजन / विश्वजन / पाश्चजन / महाजन / इदंयुग। संयुग। समयुग / परयुग। परकुल / परस्यकुल / अमुष्यकुल / इति प्रतिजनादिः // 1861 कथादेरिकण् // 7 // 1 // 21 // कथा / विकथा / विश्वकथा / संकथा / वितण्डा / जनेवाद ( जनवाद ) / भृशोवाद / जनभृशोवाद / वृत्ति / संग्रह। गुण / गण / आयुर्वेद / गुड / कुल्माष / गुल्मास / इक्षु / सक्तु / वेणु / अपूप / मांसौदन / मांस / ओदन / संग्राम / संघात / संवाह / प्रवास / निवास / उपवास इति कथादिः // 1869 हविरनभेदापूपादेो वा // 1 // 29 // अपूप। तण्डुल / ओदन / पृथुक। अभ्यूष / अभ्योष / अवोष। किण्व / मुसल। कटक / शकट / वर्णवेष्टक / ईर्गल / इल्वल / स्थूणा / यूप / सूप। दीप / प्रदीप / अश्वपत्र इत्यपूपादिः॥ 1870 उवर्णयुगादेर्यः // 7 // 1 // 30 // युग / हविस् / अष्टका / बर्हिस् / मेधा। नुच् / बीज / कूप / क्षर / अक्षर / खद / स्खद / विष / दाश / खर / असुर / दर / अध्वन् / गो इति युगादिः // 1881 क्षुभ्नादीनाम् // 2 // 396 // क्षुभ्ना / तृप्नु / आचार्यानी / आचार्यभोगीन / सर्वनामन् / नृनमन / नुनमेत्येके / नृत्त / नर्तन / नट / नद / नड / इत्येके / नदी। नगर / निवेश / निवास / अग्नि / अनूप / नन्दिन् / नन्दन / गहन / नदन / ख्याग् इति क्षुभ्नादिः // बहुवचनमाकृतिगणार्थम् / / 1900 प्राक्त्वादगडुलादेः // 11 // 56 // गडुल / विशस्त / दायाद / बालिश। संवादिन् / बहुभाषिन् / शीर्षघातिन् / शीर्षाघातिन् / कमण्डलु इति गडुलादिः। 101 नञ्तत्पुरुषादबुधादेः // 1157 // बुध / चतुर / संगत / लवण / वड / कत / रस / लस / यथा / तथा / यथातथ / यथापुर / ईश्वर / क्षेत्रज्ञ / संवादिन् / संवेशिन् / बहुभाषिन् / शीर्षघातिन् / समस्थ / विषमस्थ / पुरस्थ / परमस्थ। मध्यस्थ। दुष्पुरुष / कापुरुष / विशाल / इति बुधादिः / एभ्यो नञ्तत्पुरुषेभ्यो राजादित्वात् टयण // गडुलविशस्तदायादानामपि पाठं केचित् इच्छन्ति। अन्ये तु बुधादीनामष्टानामेव प्रतिषेधमिच्छन्ति / एषामेव च विकल्पमपरे। 1902 पृथ्वादेरिमन् वा // 3 // 1158 // पृथु / मृदु / पटु / महि / तनु / लघु / बहु / साधु / आशु / उरु / गुरु / खण्डु / पाण्डु / बहुल / चण्ड / खण्ड / अकिंचन / बाल / होड / पाक / वत्स / मन्द / स्वादु / ऋजु / वृष / कटु / ह्रस्व / दीर्घ / क्षिप्र / क्षुद्र / प्रिय / महत्। अणु / चारु / वक्र / वृद्ध / काल / तृप्त / इति पृथ्वादिः / 1907 वर्णदृढादिभ्यष्टयण च वा // 7 // 159 // दृढ / वृढ / परिवृढ / कृश / भृश / चुक्र / शुक्र / आम्र / ताम्र / अम्ल / लवण / शीत / उष्ण / तृष्णा। जड / बधिर / मूक / मूर्ख / पण्डित / मधुर / वियात / विलात / विमनस् / विशारद / विमति / संमति / संमनस् इति दृढादिः / 124
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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