________________ हैमपञ्चपाठी. [ हैम१५६९ शिक्षादेवाण // 6 // 3 // 148 // शिक्षा / ऋगयन / पद / व्याख्यान / पदव्याख्यान / छन्दोव्याख्यान / छन्दोमान / छन्दोभाष / छन्दोविचिति / छन्दोविचिती। छन्दोविजिति / न्याय / पुनरुक्त / निरुक्त / व्याकरण / निगम। वास्तुविद्या / अङ्गविद्या / क्षत्रविद्या / त्रिविद्या / विद्या / उत्पात / उत्पाद / संवत्सर / मुहूर्त / निमित्त / उपनिषद् / ऋषि / यज्ञ / चर्चा / क्रमेतर / श्लक्ष्ण / इति शिक्षादिः। बहुस्वराणामदुसंज्ञकानामुपादानं प्रायोग्रहणस्य प्रपञ्चः। 1576 शुण्डिकादेरण // 6 // 3 // 154 // शुण्डिका / उदपान / पर्ण / कृकण / उलप / तृण / तीर्थ / स्थण्डिल / उपल / उदक / भूमि / पिप्पल इति शुण्डिकादिः। 1597 रैवतिकादेरीयः // 6 / 3 / 170 // रैवतिक / गौरग्रीवि / स्वापिशिष्य / क्षेमधृति / औदमेघि / औदवाहि / वैजवापि / इति रैवतिकादिः। 1614 शौनकादिभ्यो णिन् // 6 // 3 // 186 // शौनक / शाङ्गरव / वाजसनेय / शापेय / काकेय / ( शाफेय) शाष्पेय। शाल्फेय / स्कन्ध / स्कम्भ / देवदर्श / रज्जुभार / रज्जुतार / रज्जुकण्ठ / दामकण्ठ / कठ / शाठ कुशाठ। कुशाप / कुशायन / आश्वपञ्चम / तलवकार / परुषांसक / पुरुषांसक। हरिंद्र / तुम्बुरु / उपलप / आलम्बि / पलिङ्ग / कमल / ऋचाभ / आरुणि / ताण्ड्य / श्यामायन / खादायन / कषायतल / स्तम्भ इति शौनकादयः / 1622 नाम्नि मक्षिकादिभ्यः // 6 // 33193 // मक्षिका। सरघा। गर्मुन् / नर्मुका। पुत्तिका / क्षुदा / भ्रमर / वटर / वातप इति / मक्षिकादयः प्रयोगगम्याः / 1623 कुलालादेरकञ् // 63 // 194 // कुलाल / वरुट / कर्मार / निषाद / चण्डाल / सेना / सिरन्ध्र / देवराजन् / देवराज / परिषद् / वधू / भद्र / अनडुह् / ब्रह्मन् / कुम्भकार / अश्वपाक / रुरु इति कुलालादिः // 1629 शिशुक्रन्दादिभ्य ईयः॥६।३।२००॥ शिशुक्रन्द / यमसभ / इन्द्रजनन / प्रद्युम्नप्रत्यागमन / प्रद्युम्नोदयन / सोताहरण / सीतान्वेषण / शिशुक्रन्दादयः प्रयोगतोऽनुसतव्याः // 1643 शण्डिकादेर्यः // 6 // 3 / 215 // शण्डिक / कृचवार / सर्वसेन / सर्वकेश / शङ्ख / शक / शट / रक / चरण / शंकर / बोध इति शण्डिकादिः // 1644 सिन्ध्वादेरञ् // 6 // 3 // 216 // सिन्धु / वर्गु / मधुमत् / कम्बोज / कुलूज / गन्धार / कश्मीर / सल्व / किष्किन्ध / गब्दिक / उरस् / दरद् / ग्रामणी। काण्डवरक। सल्वान्तेभ्यो नृनृस्थाकोऽपवादोऽञ् / शेषेभ्यो बहुविषयराष्ट्रलक्षणस्याको ग्रामणीकाण्डवरकाभ्यामीयस्य / तक्षशिलादिभ्यस्तु अञ् नोच्यते उत्सर्गेणैव सिद्धत्वात् // 1659 पदेरिकट् // 412 // पर्प / अश्व / अश्वत्थ / रथ / अर्घ्य / व्याल / व्यास इति पर्पादिः //