________________ 980 हैमपञ्चपाठी.. [हैम१४४७ व्यादिभ्यो णिकेकणौ // 6 // 3 // 34 // वैकालिकः। वैकालिका। वैकालिकी। आनुकालिकः। आनुकालिका आनुकालिको। ऐदंकालिका / ऐदंकालिकी। धौमकालिका। धौमकालिको। आपत्कालिका। आपत्कालिको। सांपत्कालिका / सांपकालिको। कौपकालिका / कौपकालिकी / क्रौधकालिका / क्रोधकालिको / और्वकालिका / और्वकालिकी / पौर्वकालिका / पौर्वकालिकी / तात्कालिका। तात्कालिकी। क्रौरकालिका। क्रौरकालिकी व्यादयः प्रयोगगम्याः। 1448 काश्यादेः॥६॥३॥३५॥ काशि। चेदि / देवदत्त / सांयाति / सांवाह / अच्युत। मोदमान / श्वकुलाल / शकुलाद / हस्तिक: / कौनाम / हिरण्य / करण / हैहिरण्यः करणे / अरिंदम / सधमित्र / दाशमित्र / सिन्धुमित्र / दासमित्र / छागमित्र / दासग्राम। शौवावतान। गौवाशन / गौवासन / तारङ्गि। भारङ्गि / युवराज / उपराज / देवराज इति काश्यादिः / 1462 धूमादेः // 6 // 3 // 46 // धूम / षडण्ड / षडाण्ड / अवतण्ड / त्वण्डक / वतण्डव / शशादन। अर्जुन / आर्जुनाव / दाण्डायन / स्थलो। दाण्डायनस्थलो। मानकस्थली / आनकस्थली / माहकस्थली / मद्रकस्थली / माषस्थली / घोषस्थली। राजस्थलो। अट्टस्थली। मानस्थली। माणवकस्थलो। राजगृह / सत्रा. साह / सात्रासाह / भक्ष्यादी / भक्ष्यली / भक्ष्यालो / भद्राली। मद्रकुल / अञ्जीकुल / द्याहाव / व्याहाव / द्वियाहाव / त्रियाहाव / संस्फीय / वर्बड / गर्त / वयं / शकुन्ति / विनाद / इमकान्त / विदेह। आनर्त। वादूर / खाडूर / माठर / पाठेय / पाथेय / घोष / घोषमित्र / शिष्य / वणिय। पल्ली / अराज्ञी। आराझी / धार्तराज्ञी। धार्तराष्ट्री / धार्तराष्ट्र / अवया / तोर्थकुक्षि / समुद्रकुक्षि। द्वीप। अन्तरोप / अरुण। उज्जयनो। दक्षिणापथ / साकेत इति धूमादिः। दाण्डायनस्थलीत्यादीनां दुसंज्ञकानामोकारान्तानां वादूरखाडूरमाठराणां च पाठोऽप्राच्यार्थः। प्राच्यानां त्वीद्रोपान्त्यलक्षणोऽक सिद्ध एव / विदेहानर्तयो राष्ट्रऽकञ् सिद्ध एव / सामर्थ्याददेशार्थः पाठः। विदेहानामानर्तानां च क्षत्रियाणामिदं वैदेहकम। आनर्तकम। पाठेयपाथेययोपान्त्यत्वादका सिद्धोऽदेशार्थः पाठः / पठेः पठाया वापत्यं पाठेयः / तस्येदं पाठेयकम् / 1471 कच्छादेर्नुनृस्थे // 6 // 3 // 55 // कच्छ / सिन्धु / वर्ण / मधुमत् / कम्बोज / साल्व / कुरु / अनुषण्ड / अनूषण्ड / कश्मीर / विजापक / द्वीप / अनूप। अजवाह। कुलूत। रगु (कु)। गन्धार। साल्वेय / यौधेय। सस्थाल / सिन्ध्वन्त इति कच्छादिः / कच्छादयो ये बहुविषया राष्ट्रशब्दास्तेभ्यो 'बहुविषयेभ्यः' इत्यकञ् सिद्ध एव / उत्तरेण त्वणा बाधा मा भूदिति पुनर्विधीयते। वर्णसिन्धुभ्याम् ‘उवर्कादिकण्' इतोकणितदपवादे कच्छाद्यणि कुरोः 'कुरुयुगन्धराद्वा' इति विकल्पे विजापकस्य कोपान्त्यलक्षणेऽणि कच्छस्यौत्सर्गिकाणि प्राप्तेऽकविधिः / अपरे कच्छमपि बहुविषयं राष्ट्रशब्दमाहुस्तदा पूर्वोक्तमेव पाठफलम् /