________________ 725 प्रकरणम् ] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. संपरिव्यनुप्रेभ्यः पराद् वदेघिनण् स्यात् / संवदतीत्येवंशील; संवादी / परिवादी विवादी / अनुवादी / प्रवादी / परिपूर्वाण्ण्यन्तादपीति केचित् / 988 वेर्विचकत्थस्रम्भूकषकसलसहनः // 5 / 2 / 59 // एभ्यो विपूवैभ्यः शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानेभ्यो घिनण् स्यात् / विविनक्ति इत्येवंशीलो विवेकी / विकत्थी / विस्रम्भी / विकाषी / विकासी / विलासी / विघाती। 989 व्यपाभेर्लषः // 5 / 2 / 60 // व्यपाभिभ्यः पराच्छीलादौ सत्यर्थे वर्तमानालषेधिनण् स्यात् / विलपतीत्येवंशीलो विलापी / अपलाषी / अभिलाषी। 990 संप्राइसात् // 5 / 2 / 61 // संप्राभ्यां पराच्छीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाद् वसतेपिनण् स्यात् / संवसतीत्येवंशीलः संवासी / प्रवासी / शनिर्देशाद् वस्तेन / 991 समत्यपाभिव्यभेश्चरः // 5 / 2 / 62 // सम् अति अप अभि व्यभि इत्येतेभ्यः पराच्छीलादौ सत्यथै वर्तमानाच्चरतेर्घिनण् स्यात् / संचरतीत्येवंशील: संचारी / अतिचारी / अपचारी / अभिचारी। व्यभिचारी। 992 समनुव्यवादुधः // 5 / 2 / 63 / / सम् अनु वि अव इत्येभ्यः पराच्छीलादी सत्यर्थे वर्तमानाद् रुधेपिनण् स्यात् / संरुन्चे इत्येवंशीलः संरोधी / अनुरोधी। विरोधी / अवरोधी। ___ 993 वेर्दहः / / 5 / 2 / 64 // विपूर्वाच्छीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाद् दहेपिनण स्यात् / विदहतीत्येवंशीलो विदाही। 994 परेदेविमुहश्च // 5 // 2 // 66 // देवीति देवृधातोरण्यन्तस्य ण्यन्तस्य च ग्रहणम् / परिपूर्वाभ्यां शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाभ्यामाभ्यां दहश्च घिनण स्यात् / परिदेवयते परिदेवयति वा परिदेवी / ण्यन्तान्नेच्छन्त्यन्ये / परिमोही / परिदाही। 995 क्षिपरटः // 5 // 2 // 66 // परिपूर्वाभ्यां शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाभ्यामाभ्यां घिनण् स्यात् / परिक्षिप्यति परिक्षिपति वा परिक्षेपी / परिक्षेप्यम्भसाम् / परिराटी।