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________________ [ कृदन्त 724 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. भुङ्क्ते भुनक्ति भुजतीति वा भोगी / भागी। कल्याणभागी। त्यागी। प्राणत्यागी / रागी / 'अघिनोश्च रञ्जेः' इति नलोपः। द्वेषी / दोषी / द्रोही / दोही। अभ्याघाती / अकर्मकादित्येव / गां दोग्धा। शत्रनभ्याहन्ता। 980 आङः क्रीडमुषः // 5 // 2 // 51 // शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाभ्यामाङः पराभ्यामाभ्यां घिनण् स्यात् / आक्रीडत इत्येवंशील आक्रीडी / आमोषी। शीलादिप्रत्ययान्ताः प्रायेण रूढिप्रकारा यथादर्शनं प्रयुज्यन्त इति उपसर्गान्तराधिक्ये न् भवति / एवमुत्तरत्रापि / 981 प्राच यमयसः॥ 5 / 2 / 52 // शीलादौ सत्यथै वर्तमानाभ्यां प्रादाडश्च पराभ्यामाभ्यां घिनण् स्यात् / प्रयच्छतीत्येवंशीलः प्रयामी / आयामी / प्रयासी / आयासी। 982 मथलपः // 5 / 2 / 53 // प्रात्पराभ्यामाभ्यां शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाभ्यां घिनण् स्यात् / प्रमथतीत्येवंशीलः प्रमाथी / प्रलापी / 983 वेश्च द्रोः // 5 // 2 // 54 // वेः प्राच पराच्छीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाद् द्रवतेर्घिनण् स्यात् / विद्रवतीत्येवंशीलो विद्रावी / प्रद्रावी / / 984 विपरिप्रात् सर्तेः // 6 // 55 // विपरिप्रेभ्यः पराच्छीलादौ सत्यर्थे वर्तमानात् सतेर्घिनण् स्यात् / विसरतीत्येवंशीलो विसारी / परिसारी। प्रसारी। 985 समः पृचैप्ज्वरेः / / 5 / 256 // शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाभ्यां समः पराभ्यां पृणक्तिज्वरिभ्यां घिनम् स्यात् / संपृणक्तीत्येवंशीलः संपर्की / पिन्निर्देशादादादिकस्य न ग्रहणम् / संपर्चिता / संज्वरतीत्येवंशीलः संज्वारी। केचिद् ण्यन्तादपीच्छन्ति / संज्वरी / त्वरयतेरपि कश्चित् / सत्वरी। अकर्मकादित्येव / संपृणक्ति शाकम् / 986 संवेः सृजः // 1 / 2 / 57 // शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानात् संविभ्यां परात् सृजेघिनण् स्यात् / संसृजतीत्येवंशीलः संसृज्यते वा संसर्गी, विसर्गी। 987 संपरिव्यनुप्रावदः // 5 / 2 / 58 // शीलादौ सत्यर्थे वर्तमानाद
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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