________________ प्रत्ययमाला] सिद्धहैमबृहत्प्रक्रिया. तिरस् अन्तौ // 16 // इयस् इमस् अस् पयस् प्रसृतौ // 20 // संभूयस् प्रभूतभावे // 21 // दुवस् परितापपरिचरणयोः // 22 // दुरज भिषज् चिकित्सायाम् // 24 // भिष्णुक् उपसेवायाम् // 25 // रेखा श्लाघासादनयोः // 26 // लेखा विलासस्खलनयोः // 27 // एला वेला केला खेला विलासे // 21 // खल इत्यन्ये / गोधा मेधा आशुग्रहणे // 33 // मगध परिवेष्टने // 34 // इरध इषुध शरधारणे // 36 / / कुशुभ क्षेपे // 37 // सुख दुःख तक्रियायाम् // 39 // अगद नीरोगत्वे // 40 // गद्गद वाक्स्ख लने // 41 // गद्गदडित्येके / तरण वरण गतौ // 43 // उरण तुरण त्वरायाम् // 45 // पुरण गतौ // 46 // भरण धारणपोषणयोः // 48 // चुरण चौर्ये // 49 // तपुस तम्पस् दुःखे // 51 // अरर आराकर्मणि // 52 // सपर पूजायाम् // 53 // समर युद्धे // 54 // // इति कण्ड्वादयः // // अथ प्रत्ययमाला // अश्वीयतेः सन् / 500 नानो द्वितीयाद्यथेष्टम् // 4 // 7 // स्वरादेर्नाम्नो द्विवचनभाजो द्वितीयादारभ्यैकस्वरोऽवयवो यथेष्टं द्विरुच्यते। अशिश्वीयिषति / अश्वीयियिषति / अश्वीयिषिषति / 501 अन्यस्य // 4 / 118 // स्वरादेरन्यस्य व्यञ्जनादेर्नाम्नो धातोर्विचनभाज एकस्वरोऽवयवो यथेष्टं प्रथमो द्वितीयस्तृतीयादिर्वाऽन्यतमो द्विरुच्यते। पुपुत्रीयिषति। पुतित्रीयिषति / पुत्रीयियिषति / पुत्रीयिषिषति / पुत्रीयन्तं प्रायुक्त अपुपुत्रीयत् / अपुतित्रीयत् / अपुत्रीयियत् / 502 कण्डादेस्तृतीयः // 41 // 9 // कण्वादेर्धातोर्विचनमाज एकस्वरस्तुतीय एवावयवो द्विः स्यात् / कण्डूयियिषति / आमूयियत् / 503 पुनरकेषाम् // 6 // 1 // 10 // एकेषामाचार्याणां मते द्वित्वे कृते पुनद्वित्वं स्यात् / सुसोषुपिषते / अत्र स्वपेशार्थे यङ् / ' स्वपेर्यड्डे च ' इति वृद् द्वित्वं सोषुपितुमिच्छति सन् / अत इत्यनेन विषयेऽस्य लोपात् 'स्वरस्य परे' इति स्थानित्वाऽभावे यो लुक् सिद्धः / प्राणिणिनिषत् 'द्वित्वेऽप्यन्ते' इत्यत्र द्वित्वे इति वचनात् द्वयोरेव णत्वं न तृतीयस्यापि / एकेषामिति किम् / सोसुपिषते / प्राणिणिषत् / बोभूयिषते। // इति प्रत्ययमाला //