________________ 585 चुरादयः] सिद्धहैमबृहत्पक्रिया. . 381 धूग्धीगोनः // 4 / 2 / 18 // धूर पीग् इत्येतयोो परे नोऽन्तः स्यात् / पीणयति / अपिपीणत् / यौजादिकयोर्नेच्छन्त्येके / प्राययति / गित्त्वस्य णिजभावे फलवत्कर्तर्यात्मनेपदार्थत्वम् / प्रयति / प्रयते। अनुबन्धनिर्देशो यङ्लुन्निवृत्त्यर्थी धुवतिप्रीयतिनिवृत्त्यर्थश्च / दोधावयति / पेप्राययति / धावयति / प्राययति / धूगण् कम्पने // 372 // धृनयति। धवति। धवते / अधावीत् / अधविष्ट / अधोष्ट / वगण आवरणे // 373 // वारयति / वरति / वरते / जण वयोहानौ // 374 // जारयति / जरति / अजारीत् / चीक शीकण आमर्षणे // 376 / अचीचिकत् / अचीकीत् / अशीशिकत् / अशीकीत् / मार्गण अन्वेषणे // 377 // मार्गयति / मार्गति / पृचण् संपर्चने // 376 // अपीपृचत् / अपपर्चत् / अपर्चीत् / रिचण् वियोजने // 379 // रेचयति / रेचति / वचण भाषणे // 380 // संदेशन इत्येके / वाचयति / वचति / वच्यात् / यजादिवचेरित्यत्र यौजादिकस्य वचेरग्रहणान्न वृत् / अचिंण् पूजायाम् // 381 // जैम् वर्जने // 382 // मृजौण शौचालङ्कारयोः // 383 // मार्जयति / मृजोऽस्येति दृद्धिः / मार्जति / औदित्त्वाद्वेट् / मार्जयिता / मार्जिता / मार्टा / कठुग् शोके // 384 // उत्कण्ठयति / उत्कण्ठति / श्रन्थ ग्रन्थण सन्दर्भे // 386 // क्रथ अर्दिण् हिंसायाम् ॥३८८॥चौरस्योत्क्राथयति / क्रथति / णिगि घटादित्वाद् इस्वत्वे चौरमुत्क्रथयति / अर्दयति / अर्दते / श्रथण बन्धने च // 389 / / वदिण् // 390 // भाषणे। वादयति। संवदते / छदण् अपवारणे॥३९१॥छादयति। छदति। आङः सदण् गतौ // 392 // आसादयति / आसीदति / आसदतीत्येके / आसादीत् / असदीत् / अनुस्वारेदयमित्येके / तन्मते आसात्सीत् / मृदण् संदीपने // 393 // छर्दयति / छर्दति / कृततेत्यत्र तृद्साहचर्याद् रुधादिस्थस्यैव देऽहणान्नेड्विकल्पः / छर्दिष्यति / एदिदयमित्येके / शुन्धिण् शुद्धौ // 394 // शुन्धयति / शुन्धते / अनिदिदयमित्येके / तनूण् श्रद्धाघाते // 395 // श्रद्धोपकरणयोरित्यन्ये / तानयति / तनति / उपसर्गादेये // 396 // आतानयति / मानण पूजायाम् // 397 // मनण इत्येके / मानयति / मानति / तपिण् दाहे // 398 // तापयति / तपते / तृपण पीणने // 399 // सन्दीपन इत्येके / आप्लण् लम्भने // 400 // आपयति / आपिपत् / आपति / आपत् / दर्भेण भये // 401 // दर्भयति / दर्भति / ईरण क्षये // 402 // गतावित्येके / ईरयति / ईरति / मृषिण तितिक्षायाम् // 403 // मर्षयति / मर्षते। अचिं-अदि-तपि-वदि-मृषयः परस्मैपदिन इति केचित् / शिषण असो.