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________________ 584 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [ आख्यातमकरणे मृगणि अन्वेषणे // 357 // मृगयते / अर्थणि उपयाचने // 358 // अर्थयते / पदणि गतौ // 389 // पदयते / अपपदत / संग्रामणि युद्धे // 360 // संग्रामयते / अयं परस्मैपदीत्येके / शूर वीरणि विक्रान्तौ // 362 // सत्रणि संदानक्रियायाम् / // 363 // सत्रयते। अससत्रत / स्थूलणि परिवृहणे // 364 // गर्वणि माने / // 36 // गृहणि ग्रहणे // 366 / / गृहयते / अजगृहत / कुहणि विस्मापने / 367 / कुहयते / इत्यदन्ता आत्मनेपदिनः / अदन्तत्वं च सुखादीनां णिच्संनियोगे एव द्रष्टव्यम् / तेन णिजभावे जगणतुः जगणियेत्यत्र २अनेकस्वरत्वादाम् न / // अथ विभाषितणिचः // युजण संपर्चने // 368 // 378 युजादेर्न वा // 3 / 4 / 18 // चुराधन्तर्गणो युजादिः। युजादिभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे णिच् प्रत्ययो वा स्यात् / योजयति / योजति / अयूयुजत् / अयोजीत् / लीण् द्रवीकरणे // 369 // 379 लियो नोऽन्तः स्नेहद्रवे // 4 / 2 / 16 // ली इति लीग्लीडोः सामान्येन ग्रहणम् [उपलक्षणत्वाल्लीण् इत्यस्यापि ] / लियः-स्नेहद्रवेऽर्थे गम्यमाने णौ परे नोऽन्तोऽवयवो वा स्यात् / घृतं विलीनयति विलाययति / णौ वृद्धावायादेशः / लिय ई ली इति ईकारलेषात् ईकारान्तस्यैव भवति / कृतात्वस्य तु / ___ 380 लो लः // 4 / 2 / 26 // लातेली इत्यस्य च कृतावस्य स्नेहव्वेऽर्थे णौ परे लोऽन्तो वा स्यात् / घृतं विलालयति विलापयति / स्नेहद्रव इत्येव / जटाभिरालापयते / श्येनो वर्तिकामुल्लापयते / 'लीडलिनोऽर्चाभिभवे चाचाकर्तर्यपि ' इत्यनेनावमात्मनेपदं च / पूर्वसूत्रेण नकारस्य पूर्वान्तकरणात् व्यलीलिनदित्यत्रोपान्त्यहस्खो भवति / एवमुत्तरत्रापि / णिजभावे विलयति / मीण मतौ // 370 // गतावित्यन्ये / माययति / मयति / प्रीगण तर्पणे // 371 // 1 अङ्कादीनामिति वक्तव्येऽङ्कप्लेष्कयोः फलाभावात् सुखादीनामित्युक्तम् / पूर्वाचार्यानुरोधेन त्वदंतमध्ये पाठः / / 2 द्वित्वे सत्यनेकस्वरत्वेऽपि सन्निपातन्यायान्न / सन्निपात निमित्तं ह्यनेकस्वरत्वम् /
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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