________________ चुरादयः ] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. 583 श्रामयति / अशश्रामत् / स्तोमण श्लाघायाम् // 324 // स्तोमयति / व्ययण वित्तसमुत्सर्गे // 326 / / व्यययति / गतावित्येके / वित्तेति धात्वन्तरमित्येके / वित्तयति / सूत्रण विमोचने // 326 // ग्रथने इत्यर्थः। सूत्रयति / असुसूत्रत् / मूत्रण प्रस्रवणे // 327 // मूत्रयति / पार तीरण कर्मसमाप्तौ // 329 // पारयति / अपपारत् / कत्र गात्रण शैथिल्ये // 331 // अचकत्रत् / अजगात्रत् / चित्रण चित्रक्रियाकदाचिदृष्टयोः // 332 // चित्रयति / आलेख्यं करोति कदाचित् पश्यति वेत्यर्थः। वैचित्र्यकरणार्थोऽयं न चित्रक्रियार्थ इत्यपरे। छिद्रण भेदे। // 333 // मिश्रण संपर्चने // 334 // वरण ईप्सायाम् // 335 // वरयति / अववरत् / स्वरण आक्षेपे // 336 // शारण दौर्बल्ये // 33 // तालव्यादिः। शरेति नन्दी / कुमारण क्रीडायाम् // 338 // कुमारयति / अचुकुमारत् / लान्तोऽयमित्येके / कुमालयति / कलण संख्यानगत्योः // 339 // कलयति / क्षेपे तु कालयति गाः / शीलण उपधारणे // 340 // उपधारणमभ्यासः परिचयो वा। शीलयति / अशिशीलत् / वेल कालण् उपदेशे // 342 // अविवेलत् / अचकालत् / वेलण कालोपदेश इत्येके / पल्यूलण लवनपवनयोः // 343 // पल्यूलयति क्षेत्रं धान्यं वा / अपपल्यूलत् / वल्यूलेत्यन्ये / अंशण समाघाते // 344 // समाघातो विभजनम् / अंशयति / चन्द्रो दन्त्यान्त्यमाह। व्यंसयति / पषण अनुपसर्गः // 345 // पषयति / अनुपसर्ग इति किम् / प्रपषति / गवेषण मार्गणे // 346 // गवेषयति / अजगवेषत् / मृषण् क्षान्तौ // 347 // मृषयति / अममृषन् / रसण आस्वादनस्नेहनयोः // 348 // वासण उपसेवायाम् // 349 // निवासण आच्छादने // 350 // निवासयति / अनिनिवासत् / चहण् कल्कने // 351 / / 377 चहणः शाठ्ये // 42 // 31 // चहेश्चौरादिकस्य शाध्येऽर्थे वर्तमानस्य णिचि णौ परे ह्रस्वः स्यात् त्रिणम्परे तु वा दीर्घः। अदन्तवात् सिद्धेऽपि महण पूजायाम् // 382 // अममहत् / रहण त्यागे // 353 // रहयति / अररहत् / रहुण गतौ // 354 // रंहयति / स्पृहण ईप्सायाम् // 35 // पुष्पेभ्यः स्पृहयति / रूक्षण पारुष्ये // 356 // रूक्षयति / अरुरूक्षत् / // इत्यदन्ताः परस्मैपदिनः //