________________ 182 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातप्रकरणे यति / कूटण दाहे // 286 // पट वटुण् ग्रन्थे // 288 // खेटण् भक्षणे // 289 // खेड इत्येके / खोटण क्षेपे // 290 // डान्तोऽयमिति कश्चित् / दान्तोऽयमित्यन्ये / पुटण् संसर्गे // 291 // वटुण विभाजने // 292 // वण्टयति / वण्टापयतीति कश्चित् / शठ श्वठण सम्यग्भाषणे // 294 // दण्डण दण्डनिपातने // 296 // व्रणण गात्रविचूर्णने // 296 // वर्णण वर्णक्रियाविस्तारगुणवचनेषु // 297 // पर्णण हरितभावे // 298 // कर्णण भेदे // 299 // तूणण संकोचने // 300 // वितूणयति मुखम् / गणण संख्याने // 301 // गणयति / 376 ई च गणः // 4 / 1 / 67 // गणेईपरे णौ द्वित्वे पूर्वस्येकारोऽकारश्चान्तादेशः स्यात् / अजीगणत् / अजगणत् / गणेरदन्तत्वेन समानलोपिखात् सन्वद्भावो दीर्घत्वं च न प्रामोतीतीलविधिः। 'भूरिदाक्षिण्यसंपन्नं यत्त्वं सान्वमचीकथः' इति प्रयोगदर्शनादन्येषामपि यथादर्शनमीखमिच्छन्त्येके / कुण गुण केतण आमन्त्रणे ॥३०४॥आमन्त्रणं गूढोक्तिः। कुणयति / अचुकुणत् / केतयति। अयं निश्रावणनिमन्त्रणयोरपीत्येके / पतण गतौ वा // 305 // पतयति / अपपतत् / वाशब्दो णिजदन्तवयोर्युगपद्विकल्पार्थः। तेन पतति / अपातीत् / वातण गतिसुखसेवनयोः // 306 // सुखसेवनयोरित्येके / वातयति / वा इति पृथग्धातुरित्यपरे / वापयति / कथण वाक्यप्रबन्धे // 307 // वाक्यप्रतिबन्ध इत्यन्ये / कथयति / अचकथत् / श्रथण दौर्बल्ये // 308 // श्रथयति। लत्वे श्लथयति / अशश्लथत्। छेदण द्वैधीकरणे // 309 // गदण् वर्जे // 310 // गदयति / अजगदत् / अन्धण दृष्टयुपसंहारे // 311 // अन्धयति / आन्दधत् / न बदनमिति नस्य द्विखाभावः / स्तनण् गर्जे // 312 // स्तनयति / ध्वनण् शब्दे // 313 // ध्वनयति / अदध्वनत् / स्तेनण चौर्य // 314 // स्तेनयति / अनेकस्वरत्वात् षोपदेशाभावेन न षत्वमिति अतिस्तेनत् / ऊनण् परिहाणे // 315 // ऊनयति / औननत् / मा भवानूननत् / कृपण दौर्बल्ये // 316 // कृपयति / अचकृपत् / रूपण रूपक्रियायाम् // 317 // रूपक्रिया राजमुद्रादिरूपस्य करणं रूपदर्शनं वा / रूपयति / अरुरूपत् / क्षप लाभण प्रेरणे // 319 // क्षपयति / लाभयति / अललाभत् / लभण् इति सभ्याः / लम्भयतीति तु डुलभिष् प्राप्तावित्यस्य णिगि रूपम् / भामण क्रोधे // 320 // अबभामत् / गोमण उपलेपने // 321 // गोमयति भूमिम् / अजुगोमत् / सामण् सान्त्वने // 322 // सामयति / पीणयतीत्यर्थः / श्रामण आमन्त्रणे // 323 //