________________ चुरादयः] सिद्ध हैमबृहत्प्रक्रिया. 577 // 103 // शुल्वण सर्जने च // 104 // चान्माने / डबु डिबुण क्षेपे // 106 // विडम्बयति / केचित्तु दभदिभुदभूनपीहाहुः / सम्बण संबन्धे // 107 // पोपदेशोऽयमित्यन्ये / तालव्यादिरयमिति केचित् / शंबयति / साम्बेत्येके / कुबुण आच्छादने // 108 // कुम्बयति / लुबु तुबुण् अर्दने // 110 // तुपुण इत्यन्ये / पुर्वण् निकेतने // 111 // यमण परिवेषणे // 112 // यामयति अतिथीन् / अपरिवेषणे तु / * 370 यमोऽपरिवेषणे णिचि च // 4 / 2 / 29 // अपरिवेषणे वर्तमानस्य यमेणिच्यणिचि च णौ परे इस्वः स्यात् अिणम्परे तु णौ वा दीर्घः। यमयति / अयामि / अयमि / यामंयामम् / यमंयमम् / यमः परिवेषण इत्यन्ये / तन्मते उदाहरणप्रत्युदाहरणयोर्व्यत्यासः / णाविति सिद्धे अस्य णिचि चेति वचनात् अन्येषां णिचि न भवति / स्यमिण वितर्के-स्यामयते / अस्यामि / स्यामस्यामम् / व्ययण क्षये // 113 // व्याययति / यत्रुण संकोचने // 114 // कुद्रण अनृतभाषणे // 115 / / कुन्द्रयति / गादिरयमित्यन्ये / गुन्द्रयति / श्वभ्रण गतौ // 116 // तिलण स्नेहने // 117 // जलण अपवारणे // 118 / / जालयति / क्षलण शौचे // 119 // क्षालयति / पुलण समुच्छ्राये // 129 // विलण भेदे // 121 // मिलेति केचित् / तलण् प्रतिष्ठायाम् // 122 // तुलण उन्माने // 123 / / तोलयति / तुलयतीति तुलाशब्दाद् ‘णिज्बहुलमिति णिचि रूपम् / दुलण उत्क्षेपे // 124 // बुलण निमज्जने // 12 // मूलण् रोहणे // 126 // कल किल पिलण् क्षेपे // 127 / / पलण रक्षणे // 128 // पालयति / इलण प्रेरणे // 129 // चलण् भृतौ // 130 // सान्वण सामप्रयोगे // 131 // पोपदेशोऽयमित्येके। साम सान्वपयोगे इति चन्द्रः। धूशण कान्तीकरणे // 132 // धूशयति / अधुशत् / मूर्धन्यान्तोऽयमिति केचित् / दन्त्यान्त इत्यन्ये / श्लिषण श्लेषणे // 133 // लूषण हिंसायाम् // 134 // रुपण रोषे // 138 // प्युषण उत्सर्गे॥१३६॥ प्योषयति / पसुण नाशने // 137 // पंसयति। जसुण रक्षणे // 138 // पुंसण अभिमर्दने // 139 // ब्रुस पिस जस बर्हण हिंसायाम् // 143 // स्निहण स्नेहने // 144 // स्नेहयति / म्रक्षण म्लेच्छने // 145 // भक्षण अदने // 146 // भक्षयति / पक्षण परिग्रहे // 147 // लक्षीण दर्शनाङ्कयोः // 148 // ईदिलात् फलवति कर्तर्यात्मनेपदम् / अन्यत्र