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________________ 674 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातप्रकरणे पुष ष्लुष स्नेहसेचनपूरणेषु // 39 // पुष्णाति / प्लुष्णाति / मुष स्तेये // 40 // मुष्णाति / मुषाण / अमोषीत् / पुषष पुष्टौ // 41 // पुष्णाति / पुषाण / अपोषीत् / पुपोष / पुष्यात् / पोषिता / कुषश् निष्कर्षे / / 42 // कुष्णाति / 363 निष्कुषः // 4 / 4 / 39 // निनिस्संबद्धात् कुषः परस्य स्ताद्यशित आदिरिड् वा स्यात् / निरकोषीत् / निरकुक्षत् / निष्कोष्टा / निष्कोषिता / निष्पूर्वनियमात् केवलादन्यपूर्वाच्च नित्य एवेट् / कोषिता / प्रकोषिता / निनिस्संबद्धात् कुष इति किम् / निर्गताः कोषितारोऽस्मानिष्कोपितृको देश इति नित्यमिट् / योगविभाग उत्तरार्थः। ध्रसूश् उम्छे // 43 // ध्रनाति / ध्रसान / अध्रसीत् / अध्रासीत् / इति परस्मैपदिनः / दृश् संभक्तौ // 1 // वृणीते / अवरिष्ट / अवरीष्ट / अवृत / वरिता / वरीता। // इति ज्यादयः / / // अथ चुरादयः॥ चुरण स्तेये // 1 // 364 धुरादिभ्यो णिच् // 3 // 4 // 17 // णितथुरादयः // तेभ्यो धातुभ्यः खार्थे णिच् प्रत्ययः स्यात् / णकारो वृद्धयर्थः। णिग्रहणेषु सामान्यपहणार्थश्च / चकारः सामान्यग्रहणाविधानार्थः। अत्र णिचो गित्त्वाभावात् फलवति कर्तरि आत्मनेपदं नास्ति / केचित्तु चुरादीनामुभयपदित्वमाहुः। अनित्यो हि णिच् चुरादीनां 'घुषेरविशब्दे.' इत्यत्र ज्ञापयिष्यते / बहुवचनमाकृतिगणार्थ तेन संवाहयतीति सिद्धम् / चोरयति / णिश्रीति के अचूचुरत् / चोरयाश्चकार / चोर्यात् / चोरयिता / चोरयिष्यति / 'उपान्त्यस्येति सूत्रे 'लघोदीर्घ' इति सूत्रे च णिजात्याश्रयणात् णिजन्ताद् णिग्यपि अचूचुरदित्येव न तु अचुचोरदिति / पृण पूरणे // 2 // पारयति। अपीपरत् / घृण स्रवणे // 3 // अजीघरत् / शुल्क वल्कण भाषणे // 5 // नक धक्कण नाशने // 7 // चक्क चुकण् व्यथने ॥९॥टकुण बन्धने॥१०॥ टङ्कयति / अटटङ्कत् / अर्कण स्तवने // 11 // आर्चिकत् / पिञ्चण कुट्टणे // 12 // पचुण विस्तारे // 13 // मपश्चयति / म्लेच्छण म्लेच्छने // 14 // म्लेच्छनमव्यक्ता वाक् / अमिम्लेच्छत् / अर्जण् बलमाणनयोः // 15 // ऊर्जयति / औजिजत् / तृज पिजुण हिंसाबलादान
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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