________________ तुदादयः ] सिद्धहैमबृहत्पक्रिया. 565 सिसेल / पोपदेशोऽयमित्येके / सिषेल / तिलत् स्नेहने // 74 // चलत् विलसने // 7 // चिलत् वसने // 76 / / विलत् वरणे // 77 // बिलत् भेदने // 78 // णिलत् गहने // 79 // निलति / प्रणिलति / मिलत् 'लेषणे // 80 // मिलति / अमेलीत् / मिमेल / स्पृशंत संस्पर्श // 81 // स्पृशति / अस्माक्षीत् / अस्पार्सीत् / अस्पृक्षत् / पस्पर्श / स्पृश्यात् / स्पष्टा / स्पष्ट / स्पक्ष्यति / पय॑ति / रुशं रिशंत् हिंसायाम् // 83 // अरुक्षत् / अरिक्षत् / विशंत् प्रवेशने // 84 // विशति / अविक्षत् / मृशंत् आमर्शने // 86 // आमर्शनं स्पर्शः। अम्राक्षीत् / अमाझेत् / अमृक्षत् / लिशं ऋषैत् गतौ // 87 // अलिक्षत् / आनर्ष / इषत् इच्छायाम् / / 88 // इच्छति ! एपिता। एष्टा। मिषत् स्पर्द्धायाम् // 89 // वृहौत् उद्यमे // 90 // उद्यम उद्धरणम् / वृहति / वर्हिता। वर्दा / तृहौ तूंहौ स्तूहौत् हिंसायाम् // 94 // तृहति / अतीत् / अतृक्षत् / तहिता / तर्दा / अतृहीत् / अताङ्क्षीत् / तूंहिता / तृण्ढा / स्तृहति / अस्तीत् / अस्तृक्षत् / अस्तूंहीत् / अस्ताक्षीत् / स्तृह्यात् / अथ कुटादिः। कुटत् कौटिल्ये // 9 // 340 कुटादेखिदणित् // 4 / 3 / 17 // तुदाधन्तर्गणो वृत्पर्यन्तः कुटादिः। कृटादेर्गणात् परो जिणिद्वर्जितः प्रत्ययो 'ङिद्वत् स्यात् / अकुटीत् / कुटिता / केचिल्लिखिमपि कुटादौ पठन्ति / अपरे तु कडस्फरस्फलान् कुटादौ पठित्वा पाठसामर्थ्यात् णिति वृद्धिनिषेधमिच्छन्ति / अणिति किम् / चुकोट / गुंत् पुरीपोत्सर्गे // 96 // गुवति / अगुषीम् / गुता / धुत् गतिस्थैर्ययोः // 97 // ध्रुवति / अध्रुषोत् / दुध्राव / यत् स्तवने // 98 // नुवति / अनुवीत् / नुनाव / नुविता / धूत् विधूनने // 99 // धुवति / दुधाव / धुविता / कुचत् संकोचने // 100 // व्यचत् व्याजीकरणे // 101 // __341 व्यचोऽनसि // 4 / 1 / 82 // व्यचेः सस्वरान्तस्थाऽस्वर्जिते किति प्रत्यये यत् स्यात् / विचति / विव्याच / विविचतुः। विचिता / विच्यात् / अनसीति किम् / उरुव्यचाः। गुजत् शब्दे // 102 // गुजति / अगुजीत् / जुगोज / गुजिता / घुटत् प्रतीघाते // 103 // घुटति / अघुटीत् / घुटिता। गादिन्तिश्चायमित्येके। चुट छुट त्रुटत् छेदने // 106 // भ्रासभ्लासेति वा श्ये त्रुट्यति। त्रुटति / त्रुटिता / तुटत् कलहकर्मणि // 107 // तुटति / अतुटीत् / मुटत् आक्षेपप्रमर्दनयोः। 1 प्रत्यासत्या यत् कार्य कुटादेर्डिद्वारा प्राप्नोति तस्मिन्नेव कार्ये ङित्त्वं नात्मनेपदादौ / तेन चुकुटिषतीत्यादौ सन्नन्तस्य ङित्त्वादात्मनेपदं न /