________________ सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातप्रकरणे // 108 // मुटति / स्फुटत् विकसने / स्फुटति / स्फुटिता। पुट लुठत् संश्लेषणे / // 110 // डान्तोऽयमित्येके। कुडत् घसने // 111 // घसनं भक्षणम् / घनत्वे इत्यन्ये / घनत्वं सान्द्रता / कुडत् बाल्ये च // 112 // कुडति / गुडत् रक्षायाम् / // 113 // जुडत् बन्धने // 114 // तुडत् तोडने // 115 // तुड थुड स्थुडत् संवरणे // 118 // बुडत् उत्सर्गे च // 119 // ब्रुड भ्रुडत् संघाते // 121 // संवरणेऽप्यन्ये / टुड हुड त्रुडत् निमज्जने // 124 // चुणत् छेदने // 125 / / डिपत् क्षेपे // 126 // छुरत् छेदने // 127 / / छुरति / चुच्छोर / छुर्यात् / कुरुच्छर इति दीर्घनिषेधः / स्फुरत् स्फुरणे // 128 // चलन इत्यन्ये / स्फुरति / स्फुलत् संचये च // 129 // 342 निर्नेः स्फुरस्फुलोः // 2 // 3 // 53 // निर्निभ्यां परयोः स्फुरतिस्फुलत्योः सकारस्य पो वा स्यात् / निःष्फुरति / निःस्फुरति / निःष्फुलति / निःस्फुलति / निष्फुरति / निस्फुरति / निष्फुलति / निस्फुलति / वचनभेदो यथासंख्यनिवृत्त्यर्थः। 343 वेः // 2 // 3 // 54 // वेः परयोः स्फुरतिस्फुलत्योः सकारस्य षो वा स्यात् / विष्फुरति / विस्फुरति / विष्फुलति / विस्फुलति / योगविभाग उत्तरार्थः। // इति परस्मैपदिनः // कुंङ् कूङ्न् शब्दे // 2 // कुवते / अकुत / अकुविष्ट / कुविता / गुरैति उद्यमे / // 3 // गुरते / अगुरिष्ट / वृत् कुटादिः। पुत् व्यायामे // 4 // प्रायेणायं व्यापूर्वः।। रिः शक्याशीर्ये इतीयादेशे व्याप्रियते / व्यापः / टुङ्न् आदरे // 5 // आद्रियते / आदतें। आदर्ता / धुंङत् स्थाने // 6 // धियते / दधे / धर्ता / ओविजेति भयचलनयोः // 7 // अयं प्राय उत्पूर्वः / उद्विजते / 344 विजेरिट् // 4 / 3 / 18 // विजेरिड् द्धित् स्यात् / उदविजिष्ट / उद्विजिता / उद्विजिष्यते / ओलजैङ् ओलस्जैति व्रीडायाम् // 9 // लजते / लज्जते / ललज्जे / भ्वादौ पठनाविप्येतौ प्रसिद्धयनुरोधादिह पठितौ / ष्वजित् सङ्गे // 10 // स्वजते / अस्वङ्क्त। नवा निर्दिष्टस्यानित्यत्वादिटि अस्वञ्जिष्ट / 345 स्वञ्जश्च // 2 // 3 // 45 // उपसर्गस्थानाम्यन्तस्थाकवर्गात् परस्य वजेः सकारस्य द्वित्वेऽप्यद्यपि ष: स्यात् परोक्षायां तु द्वित्वे सत्यादेरेव / परिष्वजते /