________________ 556 सिद्धहैमबृहत्पक्रिया. [आख्यातप्रकरणे ध्यमत्रिकबहुवचनम् / एवमुत्तरत्र / अकारो 'णिती'ति विशेषणार्थः / चकारो 'न कर्मणा बिच्' इत्यत्र विशेषणार्थः। अपादि / अपत्साताम् / अपत्सत / पेदे / पत्सीष्ट / पत्ता। पत्स्यते। अपत्स्यत। विदिच् सत्तायाम् // 27 // विद्यते / अवित्त / विविदे / खिदिच् दैन्ये // 28 // युधिंच संप्रहारे // 29 // युध्यते / अयुद्ध / अयुत्साताम् / युयुधे। युत्सीष्ट / योद्धा / योत्स्यते / अनो रुधिंच कामे // 30 // अनुरुध्यते / बुधिं मनिच् ज्ञाने // 32 // बुध्यते / दीपजनेति वा बिच् / अबोधि / अबुद्ध / अभुत्साताम् / बुबुधे / भुत्सीष्ट / बोद्धा / भोत्स्यते / मन्यते / अमंस्त / अमंसाताम् / मेने / मंसीष्ट / मन्ता / मस्यते / अनिच् प्राणने // 33 // अन्यते / 317 जा ज्ञाजनोऽत्यादौ // 4 / 2 / 104 // ज्ञा जन् इत्येतयोः शिति प्रत्यये परे जा इत्ययमादेशः स्यात् अत्यादौ-तिवादिश्चेदनन्तरो न भवति / जायते / शितीत्येव / जन्यते / अत्यादाविति किम् / यङ्लुपि जञ्जन्ति / दीपजनेति बिचि / 318 न जनवधः // 4 / 3 / 54 // जनवध्योः कृति णिति नौ परे वृद्धिर्न स्यात् / अजनि / अननिष्ट / वधिरत्र वध बन्धने इत्ययं गृह्यते यस्य वीभत्सत इति वैरूप्य एव सन्निष्यते अन्यत्र वधते / भक्षकचेन्नास्ति वधकोऽपि न विद्यते / हन्यादेशस्य तु वधेरदन्तवाद् वृद्धेरप्रसङ्ग एव / अन्ये वगणपठितं वधि हिंसार्थ 'यत्र शालमतीकाशः कर्णोऽवध्यत संयुगे' इत्यादिदर्शनान्मन्यन्ते / प्रत्युदाहरन्ति च ववाध / गमहनेत्युपान्त्यलुकि जज्ञे / जज्ञाते / जज्ञिरे / जज्ञिरे / जनिषीष्ट / जनिता / जनिष्यते / अजनिष्यत / दीपैचि दीप्तौ / 35 // दीप्यते / अदीपि / अदीपिष्ट / दिदीपे। तपिंच ऐश्वर्ये वा // 37 // तप्यते / अतप्त / तेपे / तप्सीष्ट तप्ता / तप्स्यते / पुरैचि आप्यायने // 36 // पूर्यते / अपूरि / अपूरिष्ट / पुपूरे / पूरिषीष्ट / पूरिता / पूरिष्यते / घरैङ् ज्वरैचि जरायाम् // 39 // धूरैङ् गूरैचि गतौ // 41 // शूरैचि स्तम्भे // 42 // तूरैचि बरायाम् // 432 घूरादयो हिंसायां च / चूरैचि दाहे // 44 // क्लिशिच उपतापे // 45 // क्लिश्यते / अक्लेशिष्ट / चिक्तिशे / क्लेशिता / क्लेशिष्यते / लिशिंच् अल्पत्वे // 46 // काशिच् दीप्तौ // 47 // काश्यते / चकाशे / वाशिच् शब्दे // 48 // // इत्यात्मनेपदिनः //