________________ दिवादयः] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. खरादौ प्रत्यये परेऽन्तो नः स्यात् इटि तु-इडादौ तु प्रत्यये परोक्षायामेव / ररन्ध / ररन्धतुः। ररन्धिथ / ररन्धिव / ररन्धिम / परोक्षायामेवेति किम् / रधिता औदिखादिड्डा / रद्धा / रधिष्यति / रत्स्यति / एवकारो विपरीतनियमनिरासार्थः। तेनेह नियमो न भवति। ररन्ध / तृपौच पीतौ // 46 // तृप्यति। 'स्पृशमशकृशतृपदृपो वा', सिचि, स्पृशादिसपो वा इति वा अकारे वृद्धौ च अत्राप्सीत् अताप्सीत् / पक्षे औदित्वादिटि अतीत् / पक्षेऽङि अतृपत् / ततर्प। दृपौच हर्षमोहनयोः॥४६॥ कुपच क्रोधे // 47 // गुपच् व्याकुलत्वे // 48 // युप रुप लुपच् विमोहने // 51 // डिपच् क्षेपे // 52 // ष्टुपच् समुच्छाये // 53 // लुभच् गाद्धर्थे // 54 // शुभच् सञ्चलने // 55 // णभ तुभच् हिंसायाम् // 57 // नशौच अदर्शने // 18 // नश्यति / 307 नशः शः // 2 // 3 / 78 // अदुरुपसर्गान्तःशब्दस्थाद्रपूवर्णात् परस्य नशेः शकारान्तस्य संबंधिनो नकारस्य णः स्यात् / प्रणश्यति / परिणश्यति / अन्तर्णश्यति / श इति किम् / प्रनष्टः। नशेरणोपदेशात् अदुरुपसर्गान्तेत्यनेनासिद्धे विध्यर्थमिदम् / 308 नशेर्नेश् वाङि // 4 / 3 / 102 // नशेरङि परे नेश् इत्ययमादेशो वा स्यात् / अनेशत् / अनशत् / अनेशताम् / अनशताम् / अनेशन् / अनशन् / अनेशम् / अनशम् / अङीति किम् / नश्यति / ननाश / नेशतुः / नश्यात् / ___309 नशो धुटि // 4 / 4 / 110 // नश्यतेः स्वरात् परो धुडादौ प्रत्यये परे नोऽन्तः स्यात् / नंष्टा / नशिता / नक्ष्यति / नशिष्यति / अनझ्यत् / अनशिष्यत् / कुशच् श्लेषणे // 79 // कुश्यति / अकुशत् / भृशू भ्रंशूच अधःपतने // 61 // भृश्यति / भ्रश्यति / दृशच वरणे // 62 // कुशच तनुत्वे // 63 // शुषंच शोषणे // 64 // दुपंच वैकृत्ये // 65 // श्लिपंच आलिङ्गने // 66 // श्लिष्यति / 310 श्लिषः // 34 // 56 // श्लिषो धातोरनिटोऽद्यतन्यां सक प्रत्ययः स्यात् / आश्लिक्षत् कन्यां देवदत्तः। पुष्यादिखादङि प्राप्ते वचनम् / ' पुरस्तादपवादा अनन्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान्' इत्यङ एव बाधो न विचः। आश्लेषि कन्या देवदत्तेन / अनिट इत्येव / श्लिषू दाहे इत्यस्मात् सेटो मा भूत् / अलेषीत् / अधाक्षीदित्यर्थः।