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________________ 552 सिद्धहैमबृहत्प्रक्रिया. [आख्यातप्रकरणे __304 ज्याव्यधः विति // 4 / 1 / 81 // जिनातेविंध्यतेश्च सस्वरान्तस्था किति डिति च प्रत्यये परे स्वृत् स्यात् / विध्यति / अव्यात्सीत् / ज्याव्यधीति पूर्वस्येत्वे विव्याध / स्मृति द्वित्वे विविधतुः। विव्यधिथ / विव्यद्ध / विध्यात् / व्यद्धा / व्यत्स्यति / क्षिपंच प्रेरणे // 15 // क्षिप्यति / चिक्षेप / क्षेप्ता / पुष्पच विकसने // 16 // पुष्प्यति / अपुष्पीत् / तिम तीमच ष्टिम ष्टीमच् आर्दीभावे // 20 // पिवूच गतौ // 21 // सीव्यति / असेवीत् / सिषेव / असोडसिवूसहस्सटाम् / परिषीव्यति / अट्यपि / पर्यषीव्यत् / द्वित्वेऽपि परिषिषेव / श्रिवूच गतिशोषणयोः // 22 // श्रीव्यति। शिश्रेव। ष्ठिवू सिवूच् निरसने ॥२४॥ष्ठीव्यति। तिर्वा ष्ठिव इति तौ तिष्ठेव / क्षीव्यति / इषच् गतौ // 25|| इष्यति / इयेष / सहलुभेच्छेत्यत्र इच्छेति निर्देशादिषत् इच्छायामित्यस्य ग्रहणम् / तेनास्य नित्यमेवेट् / एषिता। ऊदिदयमित्येके / तन्मते क्खायां तक्तवतोश्च इष्ट्वा / एपिखा / इष्टः। इष्टवान् / ष्णमूच निरसने // 26 // स्नस्यति / कमूच हतिदीप्त्योः / / 27 / / कस्यति। अनासीत् / अक्रसीत् / त्रसैच् भये // 28 // भ्रासभ्लासेति वा श्ये त्रस्यति त्रसति / जू भ्रमेति वा एत्वे त्रेसतुः। तत्रसतुः। व्युसच् दाहे // 28 // व्युस्यति / अव्योसीत् / वुव्योस / षान्तोऽयमित्येके / पह षुहच शक्तौ // 30 // सह्यति / सुह्यति / ससाह / सेहतुः। सुपोह / सुषुहतुः। पुषच पुष्टौ // 31 // पुष्यति / दिद्युतादिपुष्यादेरित्यङ् / अपुषत् / पुपोष / पुष्यात् / पोष्टा / पोक्ष्यति / उचच समवाये // 32 // उच्यति / औचत् / लुटच् विलोटने // 33 // लुट्यति। अलुटत् / विदांच् गात्रपक्षरणे // 34 // स्विद्यति। अस्विदत् / क्लिदौच आीभावे // 35 // क्लियति। अिमिदाच स्नेहने // 36 // 305 मिदः श्ये // 4 / 3 / 5 // मिदेरुपान्त्यस्य श्ये परे गुणः स्यात् / मेद्यति / अमिदत् / निविदाच मोचने च // 37 // चात्स्नेहने / श्विद्यति / अश्विदत् / क्षुधंच बुभुनायाम् // 38 // क्षुध्यति / अक्षुधत् / क्षोद्धा / श्रुधंच शौचे // 39 // क्रुधंच् कोपे // 40 // क्रुध्यति। अक्रुध्यत् / पिळूच संराद्धौ // 41 // सिध्यति / असिधत् / सिषेध / ऋधूच् वृद्धौ // 42 // ऋध्यति / आर्धत् / आनर्ध / अर्धिता। गृधूच् अभिकांक्षायाम् // 43 // गृध्यति। अगृधत् / जगई। रधौच हिंसासंसद्धयोः // 44 // सध्यति / अरधत् / 306 रध इटि तु परोक्षायामेव // 4 / 4 / 102 // रध्यतेः स्वरात् परः
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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